राजस्थान का पिंगल साहित्य | Rajasthan Ka Pingal Sahity

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rajasthan Ka Pingal Sahity  by मोतीलाल मेनारिया - Motilal Menaria

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मोतीलाल मेनारिया - Motilal Menaria

Add Infomation AboutMotilal Menaria

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पृष्ठभूमि पु प्रयाण के समय ठोस और ढाद़ी छोग इसे सेना के आगे गाते हुए चरते थे । डिंगल भाषा के कचियों ने इसका वर्णन किया है ।* युद्ध का अवसर न दोने से यह राग अब शनेः-दाने: विस्खत होता चला जा रहा दे। संगीत-शाख् संबंधी प्राचीन संस्कृत प्रंथों में हस राग का नासोल्लेख नहीं मिलता । परन्तु अठारवीं शताब्दी और उसके बाद के कुछ मंथों में इसका नाम देखने में भाता है । उदयपुर के सरस्वती-भंडार में 'रागमाला' की एक सित्रित प्रति सुरक्षित है । यह कदाखित महाराणा जयरसिंह के राजत्व-काल (सं० १७४७-५५) में तैयार की गई थी । इसमें राग सिंधू को राग दीपक का पुत्र बतलाया गया हैं । इसमें राग सिंधू का एक भव्य चित्र भी हे । संगीतकला के साथ-साथ संगीत-याहित्य को भी राजस्थान से बहुत प्रोत्साइन मिछ्ा है । संगीत-शास्त्र संबंधी कई उत्कृष्ट अ्रंथ यहाँ लिखे गये हैं जिनमें संगीत-कला के विविध अंगों का बढ़ा सूक्ष्म भोर चेज्ञानिक विवेचन मिलता है । इनसे मेघाड के महाराणा कुभाजी (सखं० १४५९०-१५२१५) के रचे तीन ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं--संगीत-मीमांसा, संगीतराल और सूकप्रबंध ।*' इसमें संसीसराज सद्द से बढ़ा है । कहा जाता है कि इसमें १६००० दकोक थे 1 परंतु जाजकल यह ग्रंथ पुरा नहीं मिलता । जयपुर के कछवाहा राजा भगवंतद्दास (सं० १६३०-४१) के पुत्र साघवसिंड बड़े संगीत-प्रेंमी थे । उन्होंने स्थानदेश के पुंडरीक विहल से 'राग-मंजरी' नाम का एक ग्रंथ लिखवाया था” जो प्रकाकित भी हो सुका हैं। भगवंतदास से कोई दो सो घर्ष १९. (क) हुवो अति सींघवों राग, वागी हकों | थार आया पिसण, घाट लागै थर्कां || -ईसरदास (स० १५९५-१६७५) (ख) सखी अमं)णी साहिबी, निरमें काली नाग । सिर रास बिग समघ्रम, रीकी सिधू राग ॥ -ाबीकादास (संग १८२८-९०) (ग). आठस जागे ऐस में, बपु ढीले विकसत | सींघू सुणियाँ लो गुणी, कबच न मावे कत || -यूरजमल (सं० १८७९-१९२५) १३, हरबिलास सारडा। महाराणा कुंभा, प्र० १६६ । श४. एम० कृष्णमाचार्य; हिस्ट्री आव क्‍्लासिकल संस्कृत लिटरेंचर, प्र० ८६२ । १५. ओझा; राजपृताने का इतिहास, पहली जिल्द, पू० ३२!




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now