हिंदी शब्दसागर | Hindi Shabd Sagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतर अयन जमा कमा नाग. फिगर न क्रि० प्र०-करना ।--डालना ।--देना ।--पड़ना । २ छिद। छेद | रंघ्र | वि०- १ झ्रेतद्वांन । गायब । लुप्त । उ०--मोही ते परी री चुक श्रेतर भए है जाते तुमसां कहति बाते मैं ही किया ह दन ।--सूर। ख करी कृपा हरि कुंवरि जिश्ाई । घ्रेतर आय भए सुरराई ।--सबल | क्रि० प्र०-करना--होना । २ दूसरा । श्रन्य । श्रोर । विदोष-इस अध में इस शब्द का प्रयोग प्रायः योगिक शब्दों में मिलता है जैसे प्रंथांतर स्थानांतर कालांतर देशांतर पाठां- तर मतांतर यज्ञांतर इत्यादि । क्रि० वि०-दूर । श्रलग । जुदा । प्रथक । बिलग । उ०- के कहाँ गए गिरिघर तजि मोकें हां केसे में श्राई । सूरश्याम । भए मोते श्रपनी चुक सुनाई ।--सूर। ख सूरदास प्रभु को हियरेते श्रंतर करों नहीं छिनही ।--सूर । क्रिं० प्र०-करना ।--दोना । संज्ञा पुं० सं० अन्तर | हृदय । झतः्करण । जी । मन । चित्त | उ०--झंतर प्रेम तासु पहिचाना । मुनि दुलेभ गति दीस्ह सुजाना--तुलसी । क्रि० बि० भीतर । झंदर । उ०-- क संघानेड प्रभु बिशिख कराला । उठी उद्धि उर झंतर उ्वाला ।--तु्सी । ख मोहन मूरति स्याम की श्रद्धत गति जोइ । बसत सुचित अंतर तऊ प्रतिबिबित जग हो ।--बिह्ारी । ग चिंता ज्वाल शरीर बन दावा लगि लगि जाइ । प्रगट घु्मां नहि देखिये उर अंतर घु घुँ झाय ।--गिरघर । घ बाहर गर लगाइ राखोंगी झेतर करोगी समाधि ।---हरिश्चंद्र । क्रि० प्र०-करना - भीतर करना । ढॉकना । छिपाना । उ०--फिरि चमक चाप लगाइ चंचल तनहि तब श्रेतर करे । अंतर अयन-सज्ञा पु स० | १ ही । तीर्थो की एक परिक्रमा विशेष । २ एक देश का नाम । अतरअ्ि-सज्ञा री स० | पेट की श्रम्षि । जररासि । पेट की गरमी जिससे खाई हुई वस्तु पचती है । अ्रतर चक्र-सज्ञा पु० स० 9 दिशाओं श्रौर विदिशाश्रें के बीच के श्रेतर को चार चार भागों में बॉटने से बने हुए ३२ भाग । २ दिशाओं के ऊपर कहे हुए भिन्न मिन्न विभागों में चिड़ियों की बाली सुन कर शुभाशुभ फल बताने की विद्या । जिस दिशा में पत्ती बैठ कर बोले उसका विचार करके शकुन कहने की विद्या । ३ तंत्र के श्रनुसार शरीर के भीतर माने हुए मूलाघार श्रादि कमल के श्राकार के छुः चक्र । घट । ४ श्रात्मीय वर्ग । स्वजन समूह । भाई बंधु की मडली । दे । कै अतरस्थ कस बा सफल न बा सतत अतरछाल-संज्ञा ख्री- स० अन्तर + छाल छाल के नीचे की कोमल छाल वा भिल्ली । घोकले के भीतर का कोमल भाग । अतरजासी-सजा पुर दे० । अतरजाल-संज्ञा पूृ०. | स० सन्त जात कसरत करने की एक लकड़ी । अतरकझ्ष-बि० स० १ भीतर की जाननेवाला । ्रेतःकरण का श्राशय जाननेवाला । हृदय की बात जानने वाला । झंतयाँमी । २ भेद जाननेवाला । अंतर दिशा-सज्ा ख्री० | स० दो दिशाओं के बीच की दिशा । कोण । विदिशा । अतरपट-संज्ञा पु सं० | १ परदा। श्राह् । श्रोट । श्राड़ करने का कपड़ा । २ विवाह संडप में सत्यु की श्राहुलि के समय श्रम्नि श्रोर वर कन्या के बीच में एक परदा डाल देते हैं. जिसमें वे दाना उस श्राहुति को न देखे । इस परदे को श्रेतरपट कहते हैं । क्रि० प्र०-करना ।--ढालना ।--देना । मुद्दा ०--साजना न् छिपकर । सामने न हेना | श्रोट में पहना | ३ 9 परदा। छिपाव | दुराव । भेद । उ०-तासों कोन थ्रैतरपट जो श्रस प्ीतम पीच ।--जायसी । ४ घातु वा ्रोषघ को फू कने के पहले उसकी छुगदी वा संपुर पर गीली मिट्टी के लव के साथ कपड़ा लपेटने की क्रिया । कपड़सिट्टी । कपड़ोौरी । कपरोटी । उ०--क्रा पूछो तुम घालु निषादी । जा गुरु कीन्ह श्रतरपट श्राह्टी ।--जायसी । क्रि० प्र०-क्रना ।--होना । १ गीली मिट्टी का लेव देकर लपेटा हुआ कपड़ा । अंतर पुरुष-सज्ञा पु सं | 9 श्रात्सा । २ परमात्मा । शतर्यामी । परमेश्वर । अतरप्रभव-सज्ञा पु स० | व्णसंकर । जो दो भिन्न भिक्ष वर्णो के माता पिता से उत्पन्न हो । अतररति-मज्ञा ख्रा० स० संभाग के सात श्रासन । यथा स्थिति तियक सम्मुख विमुख श्रध उद्ध और उत्तान । अतरशायी-सशा पु० स० | श्ेतरस्थ जीव । जीवात्मा । अतरसंचारी-संश्ञा पुः स८ | वे श्रस्थिर मनाविकार जा बीच बीच में श्राकर मनुष्य के हृदय के प्रधान भर स्थिर सने- चिकारों में से किसी की सहायता वा पुष्टि करके रस की सिद्धि करते हैं । इसे केवल संचारी भी कहते हैं । श्ंतर शब्द इस क्रारण लगाया गया कि किसी किली ने श्रनुभाव के श्रेतरगंत सात्विक भाव को तन संचारी लिखा है । थे ३४३ माने गए हैं । दे० संचारी । अंतरस्थ-बि० सं० भीतर का । भीतरी । झंद्र का | भीतर रहने वाला ।




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