हिंदी शब्द सागर खंड 5 | Hindi Shabd Sagar Pachawa Khand

Hindi Shabd Sagar Pachawa Khand by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिरंगवात २४१४ फिरता हि एल जा. को कि गन वाया पुं० फिरंग + सं० वात वातज फिरंग । दे० फिरक-संज्ञा स्रो ० हिं फिरना एक प्रकार की छे टी गाड़ी फिरग २ | जिस पर गाँव के लोग चीजों के इघर शघर ले फिरंगी-वि० हिं० फिरेंग १ फिरग देश में उत्पन्न। २ जाते हैं रुदेटखैड । फिर देश में रहनेवाला । गोरा । इ फिंगग देश का । | फिरकना-क्रि० अ० हिं० फिरना १ थिरकना । लाचना । संज्ञा पुं० स्री० फिरंगिन फिर ग देश वासी । युरोपियन । इ०--इबशी रूमी शार फिरंगी । बड़ बड़ गुनी और तेहि संगी जायसी । संज्ञा ख्री ० विव्टायती तलवार । युरोप देश की बनी तटवार। इ०--चमकती चपलान फेरत फिरगें मट इंद्र को चाप रूप वैरष समाज को ।--भूषण | फिरंट-बि० हिं० फिरना १9 फिर हुआ । विरुद्ध । खिलाफ | २ बिगड़ा हुश्ना । विरोध या लड़ाई पर इद्यत । जैसे बात ही बात में वद्द सुकसे फिर ट हे गया । क्रि० प्र०--होना ॥ फिर-क्रि० बि० दिं० फिरना १ जैसा एक समय है चुका है बेला ही दूसरे सपय भी । एक बार और । दोबारा । पुनः | जैसे इस बार तो छोड़ देता हूं फिर ऐसा काम न करना । उ०--नेन नचाय कही सुसकाय छका फिर आइये खेठन हारी ।--पद्माकर । यो०--फिर फिर स्व बार बार। कई दुफा । उ०--फिर फिर बूऋति कहि कहा कहो साँवरेगात । कहा करत देखे कहा अली चली क्यों ज्ञात ? ।---बिंहारी । २ झागे किसी दूसरे वक्त । भविष्य में किसी समय । शरीर वक्त । जैसे इस समय नहीं है फिर ले जाना । ३ काई बात हो चुके पर । पीछे । अनतर । इपरांत । बाद में । जैसे क फिर क्‍या हुआ १? ख लखनऊ से फिर कहाँ जाओगे ? मारा फिर जिये ते हाथ न गहीं कमान ।--कबीर । ४ तब । उस अवस्था में । उस दाठत में । जेपे क ज़रा उसे दे फिर देखो कैसा कश्ठाता है । ख उसका काम चिकल जायगा फिर तो व किसी से बात न करेगा। उ०--सुनते थघुनि घोर छुटे छुन में फिर नेकहु राखत चेत नहीं ।-- इनुमान । तुम द्वितकारी । उतर दुंईं फिर अनुचित भारी ।--तुलसी । सुहा०--फिर कया है ? तब कया पूछना है । तत्र ते किमी बात की कसर टी नदी है। तब ते कोई अड़चन ही नद्दीं है। तब ते सब बात बनी बनाई है। २ देश संबंध में झागे बढ़कर । और चलकर | झागे और दूरी पर । जेसे उस बाग के थागे फिर क्‍या है? ६ इसके अतिरिक्त । इस४ सिवाय । जेसे वहां जाकर उसे किसी बात का पता न फिर यह भी तो है कि वदद जाय या न जाय 1. जन २ किसी गोल वस्तु का एक ही स्थान पर घूमना। लट्टू की तरह घूमना या चक्कर खाना । फिरका-संज्ञा पुं० | श्र० 9 9 जाति । २ जत्था । ३ पंथ । संप्रदाय । फिरकी-संज्ञा ख्रा० दिं० फिरकना १ वह गोल या चक्राकार पदाथ जो बीच की कीली को एक स्थान पर टिकाकर घूमता २ लड़कों का एक खिलौना जिसे वे नाते हैं । फिरहरी । ३ चकई नाम का खिलोना । उ०--नई लगनि कुछ की सकुचि विकल भद्दे । दुहू भोर ऐएची फिर फिरकी ढों दिन जाय 1---बिहारी । ४ चमड़े का गोल टुकड़ा जा तकवे में लगाकर चरखे में छगाया जाता है । चरखे में अब सूत कातते हैं तब उसके लच्छे को इसी के दूपरे पार लपेटते हैं । १ उकड़ी धातु वा कदूदू के छिन्षके शादि का गोल टुकड़ा जा तागा बटने क॑ तकचे के नीचे लगा रहता है। ६ मालखभ की एक कसरत जिसमें जिघर के दाथ से मालखंभ लपेटते हैं उसी शोर गदन झुकाकर फुरती से दूसरे ाथ के कंधे पर मालखभ का लेते हुए उड़ान करते हैं । यो०--फिरकी का नकीकल मालखेम की एक कसरत । इसमें एक दह्ाथ झपनी कमर के पास से उल्टा ले जाते हैं ओर दूतरे हाथ से बगल में माल्लखंभ दबाते हैं ओर फिर देनों हाथों की इईंगल्ियो को मेंठ झेते हैं। इनके पीछे जिघर का हाथ कमर पर होता है उसी ओर सिर ओर सब घड़ को घुमा कर सिर का नीचे की शोर हुए माल्लखंभ में लगा कर दंडवत करते हैं । फिरकी दूंड॒ न एक प्रकार की करत या दंड जिसमें दंड करते समय देने श्वाथे को जमा कर देने इ थों के बीच में से सिर देकर कमान के समान दाथ उठ ये बिना चक्कर मारकर जिस स्थान से चलते हूं फिर ब्दी रा जते हैं । ७ कुस्ती का पुक पेंच । जब जोड़ के दोनों हाथ गन पर हों अथवा एक हाथ गदन पर और एक भुजदंड पर है तब एक द्ाथ जोड़ की गदन पर रख कर दूसरे दाथ से इसके छगाट को पकड़े और उसे सामने देते हुए शाइर टाँग सारकर गिरा दे । फिरता-संज्ञा पुं० दिं० फिरना स्त्री० फिरती १ वापसी । २ अस्वीझार । जैसे हुँडी की फिरती । वि० वापस । लाटाया हुआ । जेसे लिया हुआ माऊ कहीं फ़िरता दाता है ।




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