राष्ट्र - भाषा - हिंदी | Rastra-bhasha-hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मर:
उसके सदस्य न बनेंगे मैं भी बाहर रहूँगा। यह सच है कि मैं दिं०
० सभा का सदस्य नहीं बना हूँ । इस सम्बन्ध में सन् ४र में
काका कालेकर जी ने सुससे कहा था और हाल में डा० ताराचन्द ने।
झापने बस्बई में पश्नगली जाने से पदले एक लिफाफे में दो पत्र सुके
झेजे थे। उनमें से एक में श्रापने इस विषय में लिखा था । किन्तु
मुके बिल्कुल स्मरण नहीं है कि कभी झापने मौखिक रीति से सुकसे
हद ० प्र० समा के सदस्य बनने के लिए कहा दो श्र मैंने झब्दुल-
हक़ साहब का दृवाला देकर इन्कार किया हो । सुक्ते लगता है कि
अपने एक सुनी हुई बात को आपने सामने हुई बात में स्टति-अम से
'परिणत कर दिया है । सन ४२ में काका जी ने जब र्चा की उस समय
मैंने उनसे मौलवी श्रब्दुलहक़ तथा उदू बालों को लाने की बात
झवश्य कही थी । तात्पयं वद्दी था जो झाज थी है थर्थाव् यह कि
ज्ञय तक हिन्दी और उदू“-लेखक हिन्दी डदू' के समन्वय में शरीक
नहीं होते तब तक यह यत्न सफल नहीं दो सकता । हिं० प्र० सभा
यदि इस काम में कुछ भी सफलता प्राप्त करेगी तो वह अवश्य मेरे
घन्यवाद की पात्री दोगी । आज तो हिं० प्र० सभा में शामिल होने
में मेरी कठिनिता इसलिए बढ गई है कि चह दित्दी भर उदू' दोनों
को मिंलाने के झतिरिक्त हिन्दी और उदू* दोनों शैलियों और लिपियों
को अ्रलग-धलग प्रत्येक देशवासी को सिखाने की बात करती है ।
यह तो मेंने झापके पत्न की बातों का उत्तर दिया । मेरा निवेदन
है कि इन बातों से यह परिणाम नहीं निकलता कि झाप अथवा हिं०
श्र० सभा के श्रन्य सदस्य सम्मेलन से अलग हों । सम्मेलन हृदय से
झ्ाप सबों को श्रपने सीतर रखना चाहता है। झ्ापके रहने से वह
झपना गौरव समकता हैं। श्राप ाज जी काम करना चाहते हैं वह
ससम्मेजन का अपनों कास नहीं है। किन्तु सम्मेलन जितना करता है वह
शापका काम है । झाप उससे श्रप्मग जो करना चाहते हें उसे सम्मेलन
में रहते हुए भी सवतन्त्रतापूवंक कर सकते है । ... --पु० दा० टणडन
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