हां यही सच है | Ha Yahi Sach Hai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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76. हा; यही सच है “जी इसलिए ही तो मै आप से कह रही हूं कि बंटी के लिए कोई लड़क अभी से ढूंढने लग जाओ।” “हा गीता कोई अच्छे घराने का लड़का भिल जाए मैं भी बेटी नीलम के हार पीले करके गंगा नहा लू। मेरी भी अब यहीं इच्छा है। छोटी दोनों भी जघान होने लगी है, तुम्हारी चिता किसी सीमा तक ठीक भी है। अच्छा में जस हाथ-मुह थी लू तुम इलका-सा नाश्ता तैयार करो। सुवह से कुछ भी खाया-पिया नहीं है।” मीता नाश्ता तैयार करके ले आई। “जी गर्म-गर्म परांठे खाओ।!। आपकी पसंद के मूली के परांठे बनाए है /” “गीता घरगृहस्थी में अगर मियां-बीवीं एक-दूसरे की पसद को समझे, एक-दूस की पसद का ध्यान रखें तो घर स्वर्ग होता है। हां अगर मिया-सीदी एक-दूसरे की किया निकालने लगें तो वहीं घर नर्क बन जाता है। इसीलिए ती मैं प्राय. यही कहता हू कि लडकियों का पढना-लिखना बहुत ही जरूरी है। अगर आप भी अनपढ़ होती तो फिर सोच भी नहीं सकती हो कि तुम्हारा ही कया व्यवहार होता। पढे-लिखें व्यक्ति की पहचान बगैर ब्ताए ही हो जाती है। कुछ मसलो पर हम दोनों एक-दूसरे से कई बार सहमत भी नहीं होते है। मगर हमारी लड़ाई जवान तक ही सीमित रहती है। माता-पिता के व्यवहार का बच्चों पर बहुत असर पड़ता है। माता-पिता ऊपने बच्चो के लिए आप उदाहरण बनते है।. आज नाश्ते का' मजा ही कुछ और है। बहुत आनंद आया। अच्छा एक बहुत जरूरी केस याद आ गयां है। बहुत-सी फाइले देखनी हैं-अब मैं दफ्तर जा रहा हूं। पलक झपकने की भांति दिन व्यतीत होते रहे। जैसे ही एक वर्ष व्यतीत हो गया नीलम इम्तिहान देकर फ्री हो गई। जैसे कोई हसीन स्वप्न देखा हो ऐसे ही समय व्यतीत हुआ था। उसे मालूम ही नहीं हुआ कि कैसे समय पख लगाकर उड़ गया है। अनेक खुशियां दिल मे महसूस करते हुए नीलम रेल पकड़ अपने घर के लिए रवाना हुईं। रेल के सफर में नीलम को रह-रहकर अपने घर का ख़याल आने लेगा। कैसा अद्भुत है व्यक्ति का मन ! जहा जाना होता है व्यक्ति का मन पहले ही वहां पहुंचका वहा की ही कल्पनाएं करने लग जाता है। मन में विधार उठने लग जाते है कि अब वहां क्या हो रहा होगा। वहा यह हो रहा होगा, वहां वो हो रहा होगा । कितना समय नीलम अपने माता-पिता से दूर रही थी । मन में घर के संदस्यो के चेहरे एक-एक करके उसे नजर आने लगे। अपने घर के बारे सोचते-सोचते नीलम का सफर पूरा हो गया।




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