आचार्य तुलसी साहित्य एक पर्यवेक्षण | Acharya Tulasi Sahitya Ek Pryavekshan

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Acharya Tulasi Sahitya Ek Pryavekshan by समणी कुसुमप्रज्ञा - Samani Kusumpragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अप्रतिम: कार्य पुज्यपाद आचार्य श्री तुलसीजी ने समग्र भारतवर्ष में प्रचार करके लोगो को जो उपदेश दिया, वह इतना विशाल है कि एक संदर्भ ग्रथ में पूरा छप नहीं सकता । समणी कुसुमप्रजाजी ने उनके विस्तृत साहित्य से 'चुन-चुनकर विविध विषयों की सुक्तियो का अनुपम संग्रह “एक बूद : एक सागर' पांच खंडो में तैयार कर दिया है, वह छप भी चुका है । अब उनका प्रस्तुत प्रयत्न पूज्यश्री के समग्र साहित्य का परिचय देकर अहिसा, समाज, अध्यात्म, संस्कृति, नीति, राजनीति आदि से सम्बन्धित लेखो की सुची बनाकर, वे विपय कहा, किस पुस्तक मे आए है, इसकी निर्देशिका तैयार करना है! जब मैं 'लेख' शब्द का प्रयोग करता हू, तब पूज्य आचार्यश्री के प्रवचनो एवं लिखित लेखो से अभिप्राय है । अब तो टेपरिकाडंर का साधन भी उपस्थित हो गया है । उनके व्याख्यान को टेप करके कोई लेख तैयार कर दे तो वह भी लेख में शामिल है । माचारये तुलसी केवल नाम के आचायें नही है। शास्त्रों मे आचार्य के जो लक्षण दिए है, उनमे अनुशासन एक है। आचायंश्री अपने संघ के अनुशासन के विपय में सदा जागरूक रहे है । साधक की आचार-विचार की जो मर्यौदाए है, उनकी सुरक्षा करना उनका कत्त॑व्य है और इस कत्तेव्य को आचार्यश्री ने बखूबी निभाया है । आज के जमाने मे आचार्य कहलाने वाले तो बहुत है किंतु अपने सघ के अनुशासन की सुरक्षा तो कुछ ही कर सकते है। उनमें से एक आचार्य श्री तुलसी है । आचा्यंश्री के लेखो मे न केवल घारमिक चर्चाए है वल्कि समाजधमं, राजधमें, नीतिधमं आदि सब मानवधर्मों की. चर्चा उनके लेखो मे होती है। वे तथाकथित धर्माचरण की चर्चा कही नही करते । प्रस्तुत पुस्तक मे आए लेखों के विषयमात्र पढ़ने से प्रतीत हो जाएगा कि वे किसी साप्रदायिक धर्म की व्याख्या नही करते कितु मानवधर्म को समग्र भाव से नजर के सम्मुख रखकर ब्रतों की चर्चा करते' हैं । जेनो के आचायं होकर भी राजनैतिक सूभ्दरूक जितनी आचार्य तुलसी मे है, अन्यत्र दुर्लभ हैं । राजनीति में जब अणुबम की विशद चर्चा होने लगी




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