परमात्मप्रकाश प्रवचन भाग - 5 | Paramatmaprakash Pravachan Bhag - 5
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दोह्दा ४ क ् दर
जान पाये तो चह ज्ञान नहीं हैं. । , ,
एक वार स्कूलमें इन्स्पेक्टरते सुचना दी कि हम फलानें ट्नि बच्चों
की परीक्षा लेने आयेगे। सो मास्टर साहबूने उन बच्चों को खूब सिखाया |
जापान जर्मनी; अमेरिका की सारी नदियां पहाड़ सब सिखा दिया कि
इन्रपक्टर यों पूछे तो यों जवाब देना । सब लड़के श्रन्छी तरहसे तंयार
होकर बैठ गए सब लडके बडे उत्सुक थे । इन्स्पेक्टर आया, पूछा कि बर्चों
बतलावों जो तुम्हारे गावरे से साला निकलता है त्रद्द नाला कहांसे निकलता
? अब बच्चों ने तो श्रमेरिका) जर्मनीकी पढ़ी थी; 'अझषने गांवका नाला कहा
पडा था ” अरे सारी दुनियाको तो जान लिया और जिस नालेमे कभो
डूबकर मर सकते हैं डसे समझा ही नहीं कि कहाँ से निकला है ? सभी पर-
पदु,थॉका ज्ञान कर लिया श्र एक निज श्रात्माका जो कि सुख दु'खका
जिम्मेदार हे उसका ज्ञान न किया तों कया ज्ञान किया ?
यह दुनियां अथवा यह मुक्त स्थान विष्णुल्लोक है । 'विष्रणु किसे
कहते हैं ? “व्य/प्नोति इति विष्णु * जो सर्वपदार्थोमं व्यापकर रहे उसे
विष्णु कहते हैं । च्स लॉकको विष्णणुलोक कहते हैं । सो परलोक शब्द्से
उस मोक्षया वर्णन किया है । अन्य कोई शिवलोक नहीं है; कल्याणमय
झात्माके चरमविकासका जो साधन है; वहीं शिवलोकादिक हैं। इस पर-
लोक शब्दके द्वारा वाद्य जो परमात्मतत्व हैं वह ही दम झाप सब लोगोंके
लिए उपादेय है । कहते हैं ना भूखे भजन न होय गोपाला) यह लो अपनी
कठी माला ।” झरे भूखे हो तो न करो, किन्तु जब शारामसे हो; खाये पिये
हों; कोई म्रकारकी '्ापत्ति नह्दीं है तो मजेसे झपने झापमें वसे हुए दस
प्रमुके दर्शन करो ना । कोई असुविधा हो चिन्ता हो; अटक हो तो भाई
उसे सभाल लो, पर जब मं,जमें हो तव तो प्रभुस्वरूपका स्मरण करो |
ाज छुछ कास नहीं हैं; फोलततू हैं तो चलो मुक सिनेमा देखे,
श्मुक थियेटर देखेंगे । ये फात्तू काम जो श्रपनी घुद्धिको बिगाडे ; चरित्र को
विगाडे » ऐसे कामोसे जानेके बजाय गर फाल्तू हो तो टू दू लो कोई त्यागी
साधु गौर चलो श्राघ घटे वहां वटे; चलो मदिरमे ही बैठ जायें । कोई
शास्त्र मिले उसका झध्ययन करें । ऐसी इच्छा होना चाहिए । यह परमात्म-
तत्त्व ही मेरे ्ापके लिए उपादेय है; किन्तु उस परमात्माके दर्शन कर ने
लायक हम कब बने 7 जब दमारा चरित्र पवित्र दो; जीवह्हिंसासे दूर हो
किसी जीवकी हिंसा न करें । हर
जो मनुष्य रात्रिके समय भोजन करते हैं? उनका रात्रिके समय
भोजन करना यह जीबहिंसामें शामिल है । रात्रिसे कितने मच्छर हैं ।
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