परमात्मप्रकाश प्रवचन भाग - 5 | Paramatmaprakash Pravachan Bhag - 5

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Paramatmaprakash Pravachan Bhag - 5  by श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दोह्दा ४ क ्‌ दर जान पाये तो चह ज्ञान नहीं हैं. । , , एक वार स्कूलमें इन्स्पेक्टरते सुचना दी कि हम फलानें ट्नि बच्चों की परीक्षा लेने आयेगे। सो मास्टर साहबूने उन बच्चों को खूब सिखाया | जापान जर्मनी; अमेरिका की सारी नदियां पहाड़ सब सिखा दिया कि इन्रपक्टर यों पूछे तो यों जवाब देना । सब लड़के श्रन्छी तरहसे तंयार होकर बैठ गए सब लडके बडे उत्सुक थे । इन्स्पेक्टर आया, पूछा कि बर्चों बतलावों जो तुम्हारे गावरे से साला निकलता है त्रद्द नाला कहांसे निकलता ? अब बच्चों ने तो श्रमेरिका) जर्मनीकी पढ़ी थी; 'अझषने गांवका नाला कहा पडा था ” अरे सारी दुनियाको तो जान लिया और जिस नालेमे कभो डूबकर मर सकते हैं डसे समझा ही नहीं कि कहाँ से निकला है ? सभी पर- पदु,थॉका ज्ञान कर लिया श्र एक निज श्रात्माका जो कि सुख दु'खका जिम्मेदार हे उसका ज्ञान न किया तों कया ज्ञान किया ? यह दुनियां अथवा यह मुक्त स्थान विष्णुल्लोक है । 'विष्रणु किसे कहते हैं ? “व्य/प्नोति इति विष्णु * जो सर्वपदार्थोमं व्यापकर रहे उसे विष्णु कहते हैं । च्स लॉकको विष्णणुलोक कहते हैं । सो परलोक शब्द्से उस मोक्षया वर्णन किया है । अन्य कोई शिवलोक नहीं है; कल्याणमय झात्माके चरमविकासका जो साधन है; वहीं शिवलोकादिक हैं। इस पर- लोक शब्दके द्वारा वाद्य जो परमात्मतत्व हैं वह ही दम झाप सब लोगोंके लिए उपादेय है । कहते हैं ना भूखे भजन न होय गोपाला) यह लो अपनी कठी माला ।” झरे भूखे हो तो न करो, किन्तु जब शारामसे हो; खाये पिये हों; कोई म्रकारकी '्ापत्ति नह्दीं है तो मजेसे झपने झापमें वसे हुए दस प्रमुके दर्शन करो ना । कोई असुविधा हो चिन्ता हो; अटक हो तो भाई उसे सभाल लो, पर जब मं,जमें हो तव तो प्रभुस्वरूपका स्मरण करो | ाज छुछ कास नहीं हैं; फोलततू हैं तो चलो मुक सिनेमा देखे, श्मुक थियेटर देखेंगे । ये फात्तू काम जो श्रपनी घुद्धिको बिगाडे ; चरित्र को विगाडे » ऐसे कामोसे जानेके बजाय गर फाल्तू हो तो टू दू लो कोई त्यागी साधु गौर चलो श्राघ घटे वहां वटे; चलो मदिरमे ही बैठ जायें । कोई शास्त्र मिले उसका झध्ययन करें । ऐसी इच्छा होना चाहिए । यह परमात्म- तत्त्व ही मेरे ्ापके लिए उपादेय है; किन्तु उस परमात्माके दर्शन कर ने लायक हम कब बने 7 जब दमारा चरित्र पवित्र दो; जीवह्हिंसासे दूर हो किसी जीवकी हिंसा न करें । हर जो मनुष्य रात्रिके समय भोजन करते हैं? उनका रात्रिके समय भोजन करना यह जीबहिंसामें शामिल है । रात्रिसे कितने मच्छर हैं ।




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