अर्थशास्त्र का परिचय | Arthashastra Ka Parichaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त उपज के नियम श६७ यही उसका उद्देश्य होता है । विविध साधनों में श्रादर्श श्रनुगात रुपपिंत करना कठिन काम है, श्रौर इसी में सगठन-कर्ता की चठ॒राई की परां्ता दोतो है । यदद सादश लम्वे श्रनुमव के पश्चात, गलतियाँ करके श्ौर उन्हें सुधघारकर तथा उनसे शिक्षा प्रदकर, स्थापित हो पाता । है संगठनकर्ता इमेशा इस चेष्टा में रइता है कि प्रत्येक साधन को उससे कम लागत वाले साधन या उससे शधिक काय- कुशल साधन से स्थानापन्न कर दे । यदि उतको चेशत्रों को सफचता मिंजती जाय, , सो प्रत्येक साघन की सीमान्त उपपत्ति लगमग समान हो जायगी । इसी नियम को अतिस्थापना का नियम श्रथवा सम, सीमान्त उत्पत्ति का नियम कहते हैं। प्रतिस्थापना के नियम को जब उपमोग के क्षेत्र में लागू करते हूं तो उसे सम-मपीमान्त उपयोगिता का नियम कहते हैं, श्रौर जब उसे उसचि के छत्र में लागू करते हैं तन उसे सम- सीमान्त उत्पत्ति का नियम कहते हैं । एक साधन की श्रन्य साघन द्वारा प्रतिस्थापना ब्हुधा हुआ करती है । नीचे इसके कुछ उदाइदरय ईदये जाते हैं (१ ) यदि किसी सरठनकर्ता को उसतिं बढाने के लिये अविक स्थान की श्रावई॑यकता पड़े, तो या तो वह श्रौर भूमि खरोद सकता है श्रथया वह वर्तमान इमारत पर एक झौर मजिल बनवा सकता है । यदि वद्द पदला मां रण करे तो चढ पूँजो की भूमि द्वारा प्रतिस्थापना करेगा; श्र यदि वह पिछज़ा मार्ग अश्य करे, तो वह यूमि की पं जी-द्वारा प्रतिस्थापना करेगा । वह उस माग॑ को अरइण करेगा जो सस्ता हो । ( रे ) यदि सगठन-कर्ता उतत्ति बढ़ाना चाहे, तो वह या तो झषिक सजदू लगा दे श्रौर या शझषिक मशीन खरीदे । पढले माग रस करने से व पू जी को शम द्वारा स्थानापून्न करेगा, श्रौर दुसरे माग॑ इय करने पर, श्रम को प्ूजी झारा स्थानापन्न करेगा । झम्यास के प्रश्न १. सीमान्त उपन के क्रमश! घटने के नियम को उदादरस सददित सपष्ठ कीशिये । इस नियम की सीसा हैं थो बतलाइये । २. कया सीसान्त उपज के क्रमश, घटने का नियम इन पर. क्यू दोता दै ? * दूर) कृषि, (सर) मस्त्य-शत्र, (गए) मिट्टो का स्तन चनाना, (घ) खान खोइना, (उ ) चर साख सैयार फरना ऐ




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