साकेत विचार और विश्लेषण | Saket Vichar Aur Vishleshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. वचनदेव कुमार - Dr. Vachandev Kumar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रामकाव्य-परंपरा में साकेत का स्थान | १४५
ता दिन कथा कीन्ह भनुमाना ।
शाह सलेम दिलीपति थाना ॥
आदि पुरुष वरनो केहिं भाँती ।
चाँद सुरज कहे दिवस न राती ॥
हृदयराम ने सं० १६०० में 'भाषा हनुमन्नाटक' की रचना की । इसकी भाषा
परिमाजित ब्रजभाषा है। नाटक में भी दोष कम है! काव्य-चमत्कार, सौन्दर्य
इन्होंने अच्छा प्रदर्शित किया है । सस्कृत में इसी शीर्षक का नाटक गद्य-पद्य दोनों
में है पर यह केवल पद्य में हू । इसमे कवित्त-सवैयों का व्यवहार हुआ है ।
इसी समय रायमल्ल पाण्डे ने “हनतुमच्चरित' लिखा जो काव्य की दृष्टि से
महत्त्व नहीं रखता । गोस्वामी तुलसीदास का प्रकाश कुछ ऐसा छाया रहा और
इतना व्यापक वर्णन वे कर गये कि परवर्ती सामान्य कवियों के लिए कुछ रहा ही
नहीं । असल में “सुरसागर' की भाँति “रामचरितमानस' भी किसी पुर्व-परंपरा
का--चाहे वह मौखिक ही रही हो--पुर्ण विकास मालूम पड़ता है । क्योकि एका-
एक इतनी प्रौढ़ रचना, वह भी सर्वप्रथम बिना परंपरा के कठिन ही होती है
चाहे कवि कितना ही “नाना पुराणनिगमसागम सम्मत”' बयों न हो ।
रामकथा की दृष्टि से केशवदास की 'रामचन्द्रिका” महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । कुछ
मालोचक तो गाज भी उसके कला-सौन्दर्य पर मुग्च हैं । केशव को प्रेरणा
वाल्मीकि से मिली । अतः वाल्मीकि रामायण का प्रभाव तो पड़ा ही,
मन्य संस्कृत रचनामों- प्रसन्नराघव, हनुमन्नाटक, अनघ राघव, कादम्बरी,
नेषघीय चरित भादि का भी प्रभाव है। सस्कृत के तो वे पण्डित ही
थे । “रामचन्द्रिका' ३९ प्रकाशों में विभक्त है। एक प्रकाश में एक प्रसंग
हूं। इसमें घटनाओं का पारस्परिक संबंध मालूम नही होता । बीच में आक-
स्मिक रूप में कथा-प्रवाह॑ बदल दिया गया है । राम-परशुराम के संघर्ष में तो
स्वयं शिव भगवान को आना पड़ा है । केशव ने प्रायः रामकथा की बड़ी-बड़ी घट-
नाओ को स्थान दिया हैं । दृश्य वर्णनों में वे अलंकारों एवं क्लिष्ट कल्पना की
भोर बढ़ गए है । पंचवटी की तुलना धूजंटी से की तो नदी के वर्णन मे श्लेष से
चिपक गए--
विषमय यह गोदवरी अमृतन को फल देति,
केशव जीवन हार कौ दुख अशेष हर लेति ।
शरद ऋतु को वृद्धा दासी बना दिया है तो उन्होंने सुर्य की उपमा लाल मुख
वाले बन्दर से दे डाली है । फिर भी उन्हें हृदयहीन नहीं माना जा सकता क्योंकि
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