चम्पा शतक | Champa Shatak

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Champa Shatak by कस्तूरचंद कासलीवाल - Kasturchand Kasleeval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाल-रेखता ५ भरे) श्री जिनराज की भूरति लक्ष झपना दिखाती है। जगत के लक्ष सब तज के, निजातम लौ लगाती है ॥ ।। टेक ॥। इसी से वास वन लीना, पदम श्रासन श्रचल कीना । निजातम देखने को दृष्टि नासा थिर सुहाती हू ॥ श्री जिनराज०॥ १ ॥ किसी का लक्ष है तन घन, किसी का लक्ष है सज्जन । किसी का लक्ष विसनो में किसी को नारि भाती है ॥ श्री जिनराज० ॥ २॥। जिन्हों का लक्ष जैसा है, उन्हों का काज वैसा है । लगाओओ प्रीति श्रातम से, तुम्हारे काम श्रातती है ॥ शी जिनराज० ॥ दे ॥ बनावो लक्ष चेतन का, विचारों शाति छवि जिनकी । इसी से सिद्ध झातम की जु “चम्पा' को सुहाती है । श्री जिनराज० ॥ ४ ॥ है




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