षड्दर्शन - रहस्य | Shadadarshan Rahasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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रुद्रनाथ पाठक - Rudranath Pathak
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शिव पूजन सहाय - Shiv Pujan Sahay
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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३ ............ घडदर्शन-रदस्य
चाह न रद जाय, और न कोई ऐसी वस्तु ही बच जाय, जिसके लिए इच्छा उत्पन टी !
इसी को मिरतिशय सुख या निरतिशय दुम्ख की निंदृत्ति कदते हैं ।
अब यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है--इस श्रात्यन्तिक सुख का जान किस प्रकार
. होता है, संसार में देखा जाता है कि शब्द, स्पश, रुप, रख, गन्घ झादि बपयिक
सुख की पराकाड़ा ही कहीं नहीं है | इतना ही नहीं, यह भी समकना कटने कि
इनमें से कौन-सा सुख श्रेष्ठ है श्रौर कौन-सा निक्ष्ट । सुख-विशेष की उत्तमत्ता या...
तुच्छुता का ज्ञान भोक्ता के ग्रीन है। भोक्ता श्रनन्त हैं श्ौर उनकी हॉष्टियीं में! श्नन्त |
कोई सुख किसी को श्रच्छा लगता है, किसी को बुरा । इस प्रकार, लॉकिक सुखाँ के
बिधय में कुछ निश्चय करना कठिन है, तो पारलौकिक सुखों के विषय में भी कुछ
कहना दुष्कर है |
दुःख-निवृत्ति के सम्बन्ध में भी ठीक यही कठिनाई है । दुःख-निवृत्ति दो प्रकार कं
_ हो सकती है--एक, वर्तमान दुग्ख की निदत्ति; दूसरी, भावी दुख की निदत्ति । उसमें
वत्तमान दुःख-निवृत्ति की झ्पेक्षा भावी दः्ख-निवृत्ति ही श्रच्छी सानी जाती है ! करेगा,
_ बत्तमान दुख की श्रपेक्षा भावी दुख हो प्रबल दोता है। इसीलिए, भगवान
_ पतबलि ने भी कहा है--'हेये दुष्खमनागतम् ।” श्रर्धात्, मावी दुख स्याज्य है ।
तात्पयं यह है कि झ्तीत दुःख तो भोग से निदृत्त हो लुक है, बत्तमान दुख भी
. मुक्त दो रहा दे... श्रधात् भुक्तप्राय है | श्रतएव, श्रनागत दुम्ख की निवृत्ति के लिए:
-यल्न करना ही उपयुक्त समा जाता है । दी
लेकिन, शनागत दुःख की निवृत्ति के लिए चिस्ता ही क्यों ? बहतो श्रभी
उत्पन्न दी नहीं हुआ । अनुतन्न शत्रु के वध के लिए कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति यष्टा
नहीं करता । इसका उत्तर यदद है कि श्रनागत दुश्ख यथपि वत्तमान नहीं है, तथापि
उसका कारण तो बत्तंमान ही है, श्रतः उसके नाश के लिए प्रयल करना समुचित ही है
इसलिए कि. कारणु-नाश से कार्य उत्पन्न न हो । यहाँ कारण-नाश से कॉर्य-रूप
. दुग्ख का उत्पन्न न होना ( दुःख-निव्वत्ति ) ही झभीष्ट है
. निरतिशय सुख या दुमख़ की निद्नत्ति में कारण क्या है!
यहाँ एक प्रश्न उठता है कि निरतिशय सुख या दुख की निवृत्ति का शान
। .......... नहीं होता, तो उसके मानने की श्रावश्यकता ही कया है? कारण, जिस वस्तु की सत्ता
......... रहती है, वह कभी किसी को झवश्य उपलब्ध होती है, श्ौर निरतिशय सुख या बुसख-
।.......... निवृत्ति की उपलब्धि किसी को कभी नहीं होती, इसलिए उसको न मानना ही समुचित
....... प्रतीत होता है। यदि कहें कि श्रदष्ट पारलौकिक सुख निरतिशय होता है, बह भी
..... युक्त नहीं है, कारण यदद कि लोक में जितने प्रकार के सुख देखे जातें हैं, सब
....... सातिशय ही हैं, इस साइचय से श्रहष्ट सुख भी सातिशय ही दोगा, इस श्रनुमान से भी.
...... यद्दी सिद्ध होता है कि निरतिशय सुख या दुःख-निवृत्ति कोई पदार्थ नहीं हैं पा एप
इसका समाधान यह है. कि जिस अ्रनुपलब्धि के बल से निरतिशय सुख...
१, जिससे बढ़कर भी कोई सुख है ।--ले०
के किए. लसस्लला किक सनतत ः व.
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