मूर्ति मंडन प्रकाश | Murti Mandan Prakash
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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न्यांमित जिसकी उस परमातमासे प्रीत लागी है ॥
उसीकि दिलमें समझो ज्ञानकी बस जोत जागी है ॥ ६॥
१३
मूर्ति स्थापना करने की ज़रूरत ॥
चाल--कहां लेजाऊं दिल दोनों जहां मे इसकी मुशक्रिल है ॥
| मुनांसिव है उसी भगवंतकों मरतक नमायें हम !!
उसीके प्यानका फोटो जरा हिदंयमें छावें हम ॥ १ ॥
बिना मूरत किसीका '्यान दिकमें हो नहीं सकता ॥
तो.उसकी झा।न्त सुद्राकी कोई मूरत बनावें हम ! २ ॥
किया है जिसने हित उपदेश दे उपकार दुनियाका ॥
बिनयसे क्यों न उसकी मूर्तिको सर झुकाईं हम ॥ ३ ॥
करें सिजदा अगर पत्थर समझकर तबतों काफ़र हैं ॥।
अगर रंहबर समझ करके करें बप्रेजदा तो क्या हर है ॥ ४ ॥
मुसठरमा जाके सिजदा करते हैं मककेमें हर को ॥
बनी है स्ठीवकी मूरत जहां इंसाका मंदिर है ॥ ९ ॥
आय्ये मंदिरों में भी शषीर दयानद स्वामी की ।।
रखी समझा बिनय, करनेकी यह तद्वीर बेहतर है ॥ ६ ॥
जुदागाना तरीके हैं विनय करनेके दुनियामें ॥।
कहीं करत्र कहीं क्रोटो कहीं भगवतकी सूरत है ॥ ७॥
न जन »
कहीं टोपी उतार हूं कह जूता उतार है ॥
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