मूर्ति मंडन प्रकाश | Murti Mandan Prakash

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Murti Mandan Prakash  by न्यामत सिंह - Nyamat Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५) न्यांमित जिसकी उस परमातमासे प्रीत लागी है ॥ उसीकि दिलमें समझो ज्ञानकी बस जोत जागी है ॥ ६॥ १३ मूर्ति स्थापना करने की ज़रूरत ॥ चाल--कहां लेजाऊं दिल दोनों जहां मे इसकी मुशक्रिल है ॥ | मुनांसिव है उसी भगवंतकों मरतक नमायें हम !! उसीके प्यानका फोटो जरा हिदंयमें छावें हम ॥ १ ॥ बिना मूरत किसीका '्यान दिकमें हो नहीं सकता ॥ तो.उसकी झा।न्त सुद्राकी कोई मूरत बनावें हम ! २ ॥ किया है जिसने हित उपदेश दे उपकार दुनियाका ॥ बिनयसे क्यों न उसकी मूर्तिको सर झुकाईं हम ॥ ३ ॥ करें सिजदा अगर पत्थर समझकर तबतों काफ़र हैं ॥। अगर रंहबर समझ करके करें बप्रेजदा तो क्या हर है ॥ ४ ॥ मुसठरमा जाके सिजदा करते हैं मककेमें हर को ॥ बनी है स्ठीवकी मूरत जहां इंसाका मंदिर है ॥ ९ ॥ आय्ये मंदिरों में भी शषीर दयानद स्वामी की ।। रखी समझा बिनय, करनेकी यह तद्वीर बेहतर है ॥ ६ ॥ जुदागाना तरीके हैं विनय करनेके दुनियामें ॥। कहीं करत्र कहीं क्रोटो कहीं भगवतकी सूरत है ॥ ७॥ न जन » कहीं टोपी उतार हूं कह जूता उतार है ॥




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