हाथ चक्की | Hath Chakki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
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No Information available about जे० सी० कुमारप्पा- J. C. Kumarappa
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हाथ-चककी 191
स्वास्थ्य और वीमारी में आपका झोजन' नामक पुस्तक में श्री हेरी
बेंजामिन इस प्रकार लिखते हैं
“झारीर की आवश्यकताओं के अनुसार भोज्य-पदार्थो का आहार
सें शामिल करना और उचित मात्रा में उसका सेवन करने के
अलावा आहार से पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए आहार शद्ध और
प्रकृति से जेसा मिछे बैसा ही छेना चाहिए |”
शुद्धता और ताजगी के खयाल से दी हाध-चकक््की का आविप्कार
हुआ था । मय भूसी के ताजे पिसे गेहूँ के आटे की रोज आवश्यकता
होती है, और इसे प्राप्त करने का एकमात्र साधन हाथ-चक्की ही हे
भारत में वहुत पुराने जमाने से हाथ-चक्की हमारे रसोईघर
का एक मुख्य अंग रही हे । हाथ-चक्की की जरूरत गेहें खानेवालों
के लिए ही नहीं, चरन् चावल खानेवालों के लिए भी रवा, आटा
आदि तैयार करने की दृष्टि से है। गेहूँ खानेवाले प्रदेशों में प्रातत्काल
खियों का चक्की पीसने से लाभग्रदू शारीरिक व्यायाम हो जाता हे,
जिससे उनका शरीर मजबूत ओर स्वस्थ वनता है तथा स्वस्थ, सुन्दर
और प्रसन्न बालकों के उदय का मागे प्रस्त होता हे। ख्री-चग का झारी रिक
विकास ही देश में सुख-झ्ांति का आधार हे । मदिलाओं के स्वास्थ्य
पर ध्यान न देने से परिवार में असंतोप, गर्भपात, रोगी बच्चों का
जनन, बाल-मरण और नाना श्रकार के रोग आदि फलते हैं। इस
प्रकार द्दाथ-चक्की से दोहरा लाभ दे । एक तो उससे स्वादिष्ट एवं
पौष्टिक आटे की प्राप्ति होती हे और दूसरे उससे उपयोगी व्यायाम
का अवसर मिलता हे । 'भोजन' नामक पुस्तक में डा० मेक्केरिसन
दाथ-चकक्की की प्र्मंसा करते हुए कहते हैं : “गेहें के उपयोग का हाथ-
चक्की सबसे अच्छा साधन है । इससे गेहूँ सें रददनेवाले प्रोटीन
चर्बी, कार्बोहाइड्रेट, क्ार और विटामिन पूरे-पूरे प्राप्त होते हैं।
उत्तर भारत की गेहूँ खानेवाली जनता इसी प्रकार से गेहूँ का
उपयोग करती है । गेहूँ की भूसी में पचने योग्य प्रोटीन, विटासिन-'वी',
दे
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