भरत नाट्यशास्त्र में नाट्यशालाओं के रुप | Bharat Natyashastra Men Natyashlaon Ke Rup

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१०. ) बनाने के हतु घ; ड दूसरी रेखा क; ख के बराबर खीचनी होगी तथा क; ड तक एक रेखा ख; घ के बराबर बनानी होगी । घ; ढ की रेखा को बराबर बॉटने के हेतु बिन्दु च लगाना होगा तथा इस प्रकार इस विक्वष्ट ञाकृति के दो विभाग किये जायेंगे ( भरत २1 ३४ ) जैसा फलक १ (१) पर 'ग' “च” रेखा द्वारा किया गया है। झब ग खघ च एक चतुरश्र बन गया तथा क ग च डः दूसरा । आागे यह निर्देश मिलता है कि 'तस्यार्धन विभागेन रगशीष' प्रयोजयेत' ( भरत २ । ३५ ) । इसके अनुसार यदि रेखा ग ख को छु; तथा च घ को ज पर दो भागो मे बॉटा जाय तो छ ज को जोड़ने से ग खघ च दो भागों मे बेंट जाता है। पश्चिम की ओर नेपथ्य होना चाहिये ( भरत २। ३६ ) तो उसके पूवं रंगमण्डप दहोगा। इस प्रकार नेपथ्य का स्थान खघछज निश्चित होता है तथा ग च जज छ नाट्य के हेतु रगमणडप बन जाता है और क ग च ड एक चतुरश्न दर्शकों के हेतु बचता है। अब ग च ज छ रंगमरडप ( भरत २ । ६६ ) श्र्थात्‌ उस सारे स्थान को जो पात्रो को नाट्यक्रिया दिखाने के काम आता है; की परिधि हुई । इसमे तीन स्थान बनाते है--रंगशीषे; मत्तवारणी तथा रंगपीठ । नेपथ्य के द्वार रंगपीठ पर खुलने चाहिये ( २। ६६-६७ ) इस कारण रंगपीठ को पीछे रखना अनिवायें है तथा रंग- शीष; इसके ागे झऔर मत्तवारणी रंगपीठ के ऊपर । झब रेखा भ व्य द्वारा रंगपीठ तथा रंगशीषे को दो हिस्सों मे बॉट देना चाहिये । चतुरश्र नाव्यमण्डप के हेतु पूव से पश्चिम की ओर ३२ हाथ का स्थान प्रथ्वी पर नापना चाहिये; ऐसा निद्श है ( भरत २। ८७ ) । फलक ? (२) की रेखा कख ३२ हाथ की प्रथम बनानी चाहिये तथा दूसरी दो रेखायें खघ तथा कड' रेखा क ख पर सीधी खड़ी की जानी चाहिये झोर घ से ड तक एक सीधी रेखा खींची जानी चाहिये । इस प्रकार एक चतुरश्र बन जायगा । चतुरश्र झाकार को दो भागो मे बराबर बॉटने के हेतु / भरत २। ८६ ) रस्सी को दोहरी करके प्रथ्वी पर बिन्दु लगाने चाहिये; जेसे फलक ? (२) मे स्थान ग तथा च पर है; झौर ग च को एक रेखा से जोड़ देना चाहिये । इस प्रकार चतुरश्न के दो विकृष्ट भाग हो जायेंगे । एक क ग डच तथा दूसरा गच घख। अब दूसरे विकृष्ट को पुन' दो भागों मे बॉटने के




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