नव पदार्थ | Nav Padarth

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Nav Padarth  by आचार्य भीखणजी - Acharya Bhikhanji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भास्रच प्रदाथे ( ढाछ : २ ) पूर० '४२८-४८६ आख्रव कमंद्वार हैं, कर्म नहीं (दो० १-२); कर्म रूपी हैं, क्मट्टार नहीं (दो ० ३-४); बीसों आख्रव जीव-पर्याय हैं (दो०५); मिथ्यात्व आ्रव (गा० १); अविसति आख्रव (गा० २); प्रमाद आख्रव (गा० ३); कषाय आख्रव (गा० ४); योग आसख्रव (गा० ४); प्राणातिपात आख्रव (गा द्; सघावाद आखव (गा० ७); अदत्तादान आस्रव (गा० पद); अबरद्चर्य आल (गा 8) परिग्रड आख्रत (गा० १०); पंचेन्द्रिय आख्रव (गा० ११-१३); मन-वचन-काय-प्रवृत्ति आख्त्र (गा० १४-१४); भंडोपकरण आसख्रव (गा० १६५; सुची-कुधाग्र सेवन आखव (गा० १७); भावयोग आख्व है, द्रव्य योग नहीं (गा० १८); कर्म चतुस्पर्शी हें और योग अष्टस्पर्शी, अत: कम और योग एक नहीं (गा० १९-२०); आख्रव एकान्त सावद्य (गा० २१); योग आख्रव और योग व्यापार सावद्य-निरवद्य दोनों हूं (गा० २२9; बीस आख्रवों का वर्गीकरण (गा० र३े- २५); कर्म और कर्ता एक नहीं (गा० २६9; आख्रव और १८ पाप स्थानक (गा० २७-३६); आख्रव जीव-परिणाम हैं, कर्म पुद्गल परिणाम (गा० ३७ )% पुण्य-पाप कर्म के हेतु (गा* रे८-४६9; असंयम के १७ भेद आख्रव हैं (गा० ४७); सर्व सावद्य कार्य आाख्रव हैं (गा ४८); संज्ञाएं आख्रव हैं (गा० ४९9; उत्थान, कर्म आदि आख्रव हैं (गा० ४०-५९); संयम, असंयम, संयमासंयम आदि तीन-तीन बोल क्रमश: संवर, आख्रव और संवराख्रव हैं (गा० ५२-५४); आखव संवर से जीव के भावों कीं ही हानि-वृद्धि होती हैं (गा ५६-५८); रचना-स्थान और समय (गा ५६) । टिप्पणियाँ [ १--आख्व के विषय में विसंवाद पृ० ४४६; २--मिथ्यात्वादि आस्रवों की व्याख्या पु ४४६; २--प्राणातिपात -आख्रव पृ० ४४६; '४--मृषावाद आख्रव पृ० ४४८; भ--अदत्तादान आखब पृ० ४४६; ६--मैथुन आख्रव पृ० ४४४, ७--परिग्रह आखब पृ० ४५०, ८--र्पंचेन्द्रयि आख़व पूर '४५२--श्रोज्ेन्द्रिय आखब : चदुरिन्द्िय आख्रव : न्राणिन्दिय आख्रव, : रसनेन्द्रिय भाख्व, : प्प्दनिन्द्रिय आख्रव; €--मंन योग, वचन योग और काय योग पृ० '४प्र४--तीन थोगों से भिन्न कामंण योग है, वही पाँचवा आख्रव है, प्रवर्तन योग से निवर्तन योग अन्य है, शुभ योग संवर और चारित्र हैं आदि का खण्डन १०--मंडोपकरण आख्रव पु डपर&; ११-सुचीकुवाग्रह आख्रव पृ ० ४५६, १२-- द्रव्य योग, भाव योग पृ० ४६ ०; १३--द्रव्य योग अष्टस्पर्शी हैं और कर्म चतुस्पर्शी पृ० ४६२; १४- भाखवों -के सावद्य-निरवद्य का प्रइन पृ० ४६३; १५--स्वाभाविक आख्रव पृ* ४६४; १६--पाप स्थानंक और आख्व पृश ४६४; १७--अध्यवताय, परिणाम, लेग्य, योग और ध्यान




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