प्रसाद के नारी - चरित्र | Prasad Ke Nari - Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) इडिया एसोसिएशन' की स्थापना हो जाने के कारण इसका पुनर्सगठन न हो सका । १८८० के लगभग ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' भी विलुप्त हो गई । बगाल, बम्बईई की तरह मद्रास में भी “मद्रास नेटिव एसोसीएदान' की स्थापना हुई, किप्तु इसका क्षेत्र अत्यन्त सकुचित होने के कारण यह जनता का सहयोग व सहानुभुति प्राप्त न कर सकी । सद्रास मे राष्ट्रीय जागरण का श्ारम्भ वास्तव में 'हित्दू” दैनिक (प्रकाशन १८७८) से ही होता है । उपयुक्त प्रदेशो की तरह पुना में भी राष्ट्रीय चेतना के प्रादुर्भाव के परिणाम स्वरूप १८७५ में “सार्वजनिक सभा की स्थापना हो गईथी। सस्थाझ्ों के इस स्थापना काल मे इस तथ्य का निर्देश श्रावदयक है कि ये सस्थाए क्रेवल' प्रादेशिक सीमाझ्ो तक ही सीमित थी । राष्ट्रीय स्तर पर किसी सस्था के संगठन की पूर्व पीठिका मात्र थी । इनके सम्मुख राष्ट्रीय समस्याशो सम्बन्धी कोई ठोस कार्य क्रम श्रथवा लक्ष्य न था । अपने क्षेत्र के हितो की बात को थोड़े से सदस्यों के बीच कह सुन लेने तथा सरकारी नियमों की व्याख्या, श्रालोचना, कर लेने में ही इनकी शक्ति पृणतया शेष हो जाती थी । फिर भी इन सस्थाझो का' मूल्य श्र महत्व इनके सीमित क्षेत्र तथा मात्र प्रादेशिक हितो की बात को लेकर कम नहीं किया जा सकता । क्योकि सावजनिक भाषा के शझ्रभाव तथा यातायात के साधनों की विशेष व्यवस्था न होने के कारण सम्पु्ण राष्ट्र की महान्‌ समस्याश्रो को लेकर चलना श्रभी तक दुष्कर काय ही बना हुआ था । दूसरे, विदेशी सरकार के दमन चक़ का भय तथा क्रान्ति की भ्रसफलता जन्य निरादा झभी लोगो के मस्तिष्क से दूर नहीं हुई थी । तदन्तर, १८५८३ में बगाल मे, “इन्डियन नेशनल कान्फ्रेस' की' स्थापना हुई, जिस में सर्व प्रथम राजनीतिक जायृति की भावना को बल मिला । इस कान्फ्रेन्स में 'इलबट बिल' के विरोध मे लोगो ने चर्चा की । भारतीयों को इस विरोध प्रददान से झात्म-रक्षा के लिए भ्रम्रेजो ने लगभग डेढ़ लाख रुपया व्यय कर के डिफेन्स एसोसिए- दान” की स्थापना की । १८८४५ में 'राष्ट्रीय काँग्रेस” की स्थापना के समय तक प्रन्य तीन सस्थाथों “ब्रिटिश एसोसिएदन,' 'इन्डियन एसोसिएशन' तथा “सेन्ट्ल मोहमडन एसोसिएशन' की स्थापना हो; चुकी थी भ्रौर इस प्रकार से विचार विनिमय कर, किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की भावना को बल सिल रहा था । क्रान्ति के परचात्‌ भ्रग्रेज़ों और भारतीयों का संम्पकं अधिक निकट हो जाने के परिणाम स्वरूप भारतीय जनता पादइचात्य-शिक्षा के सम्पक मे झाने लगी । पाइचात्य शिक्षा धौर दंत ने भारतीयों के मस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का उद्देक कर, उन्हें सगठित होने की प्रेरणा प्रदान की । भ्रप्रज़ो द्वारा पाइचात्य दिक्षा प्रसार का उद्देश्य भले ही' हिन्दुत्व के अ्रग-भग तोड़ना 'अथवा' भारतीयों श--डा० डफ दिनकर द्वारा सस्कृति के चार भ्रध्याय पृष्ठ ३५ मे उत्कथित ।




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