प्रसाद के नारी चरित्र | Prasad Ke Nari Charitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prasad Ke Nari Charitra by देवेश ठाकुर - Devesh Thakur

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवेश ठाकुर - Devesh Thakur

Add Infomation AboutDevesh Thakur

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(५) इससे पूर्व इंगलैंड में १६८८ में हुई रक्त-हीन राज्य-क्रान्ति भी सम्राट की জনা निरंकुशता के विरोध तथा नागरिकों के अधिकार प्राप्त करने की दिश्वा में एक सफल चेष्टा थी। राजा कौ सा्वदेशिक एवं सावंभौमिक सत्ताकी मान्यताके विरोधके फलस्वरूप ही वर्ह कौ जनता श्रपने श्रधिकारों की व्याख्या करवती. हुई राजा की अ्रधिकार शक्ति की सौमित्र रेखा खींच सकी । श्राथिक तथा राजनैतिक क्रान्ति का श्रन्य उदाहरण श्रमेरीका का स्वातंत्र्य-युद्ध है । १८वीं थ्ञत्ती के सातवें दशक तक श्रमेरीका के तेरह उपनिवेश अंग्रेज़ों के श्राधीन थे। इन उपनिवेश वासियों ने व्यागारं की असुविधा पों तथा श्रधिकतम कर के रूप में श्रार्थिक शोपण के विरुद्ध विरोध का स्वर ऊँचा किया, भर श्रंग्रेज़ों के सप्तवर्पीय युद्ध (१७५६-६३) की विजय से उत्पन्न ग्रति विश्वासं पर १७७६ के स्वातंत््य युद्ध श्रौर विजय के माध्यम से गहरा आधात पहुँचाया। उस काल की श्रमेरीकी जनता का प्रतिनिधित्व वाशिंगटन ने प्रतिनिधित्व बिना कर नहीं देंगे! का नारा लगा कर किया था और उनको अपने अधिकारों के प्रति चेतना दी थी । योझूपीय देशों की भाँति एशिया में भी जब चीन की मंचू सरकार श्रंग्रेज़ों द्वारा किए जाते हुए श्रफीम के व्यापार पर नियन्त्रण न कर सकी,' उनके हारा प्रोत्साहित एवं प्रचारित ईसाई धर्म को श्रपने देश की मिट्टी में पल्लवित होने से रोक सकने में श्रसमर्थ रही श्रौर देश, की दिन प्रतिदिन गिरती हुईं श्राथिक दशा को सुधारने की दिशा में प्रयत्नशील न हो सकी, तो निदान १८४० में चीन की जनता ने टाइपिंग विद्रोह' के रूप में श्रपनी तत्कालीन सरकार के प्रति अ्संतोप प्रकट किया और देश की रक्षा की वागडोर লন গল হাথ লী लेनी चांही। इसी प्रकार उन्‍्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक भारतीय समाज भी सभी क्षंत्रों में झ्रादर्श- विहीन तथा श्रात्म-विस्मृत हो श्रध:पतन की चरम सीमा पर पेहुँच चुका था।' राजनैतिक व्यवस्था के क्षेत्र में मुग़ल साम्राज्य का महान्‌ प्रासाद बहादुर शाह के ग्रशक्त व्यक्तित्व की नींव पर खड़ा हुआ डयमग कर रहा था। महाराष्ट्र जाति के गौरवपूर्ण श्रभ्युत्थान का शिर विधाता के कठोर वज्-दण्ड से चूर-चूर हो' विनष्ट हो चुका था । सिक्‍्खों का विजय-सूर्य उदयाचल के दिसर पर ही* तिरोहित हो किसी श्रनचाहे श्रंघकार को निमंत्रण दे रहा था। सारा देश खण्डों-उपखण्डों में विभाजित हो, श्रपनी मूल-शक्ति क्षीण कर चुका था। कहीं भी कोई ऐसी शक्ति १--स्मिथ, पूजी तथा लायड < वर्ल्ड हिस्द्री, पृष्ठ २४५ २--जवाहर लाल नेहर : ग्लिम्पूसेस श्रॉफ वर्ल्ड हिस्द्री, पृष्ठ ३५८०५ ३--विवेकानन्द चरित : ले० सत्येन्र नाथ मजूमदार : श्रनु० मोदहिनी मोहन गोस्वामी, पृष्ठ ३०. । ४---वही, पृष्ठ ३०.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now