कल्पना और छायावाद | Kalpna Aur Chhayawad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हट
की स्थापना हुई । कल्पना विवेक तया तक से शासित नहीं हैं, यह सामान्य
धारणा हो गई ।. *
कल्पना-सबधी विचारों में इस महत्वपूर्ण परिवतन के दो संभावित परि
णाम देखने में श्राये--
१---रोमान्टिक कविता का आविर्माव हृश्रा । परम्परा से विद्रोह को भावना
जगी, शास्त्रीय अंक्रश ढीला पड़ा और व्यक्ति की मावनाओं एव कल्पनाओं
मी सीमा का विस्तार हुआ ।
२--रदस्यवाद का जन्म हुमा । कल्पना को केन्द्रीय सत्ता का स्थान
मिला | श्रन्त में वह निरपेच्ष सत्ता के रूप में मान ली गई । काट, हीरेल श्रादि
दाशनिकों तथा क्रौचे श्वादि सौंदर्य शासियों ने अपनी माववादी स्थापनाश्ों
के द्वारा कल्पना के इस स्वरूप के प्रचार से पर्यास योग दिया ।
एक तीसरी वात भा हुई, जो इतनी महत्वपूणण तो नहीं है, पर श्ागे चल-
कर इसकी महत्ता सबने नें स्पीकार की-उवद्द है द्रालोचक के भीतर कल्पना
तत्त्व का श्वस्थान । एडिसन औादि ने ग्राइक के भीतर तो कल्पना की स्थिति
मान ली थी, कृतिकार के भीतर वह स्वतः सिद्ध है । पर द्ालोचक द्रव तक
इस दैवी वरदान से वंचित था | हा, डे ने पहली बार श्रालोचक के लिये भी
कल्पना-शक्ति की श्रावश्यकता पर बल दिया श्रौर बताया कि कल्पना-शक्ति के
सद्दारे ही श्रालोचक किसी रचना के सम्पूर्ण श्रन्तर्निहित सौन्दर्य को परख पाता
है श्रौर निर्माता की झ्रनुमूतियों का भोक्ता बनने में समर्थ होता है ।
यहीं से कल्पना का वास्तविक स्वरूप सामने द्ाया । कांट ने माना कि
मन एक सक्रिय सत्ता है, बाहरी प्रमावों को निष्क्रिय रूप से ग्रहण करने वाला
पदार्थ नहीं । वह बाह्य प्रकृति पर श्रपनी श्रर्थवत्ता (सिंग्नीफिकेंस) का श्रारोप
करता हे । कोलरिज ने इस विचार को द्ागे बढ़ाया श्र सिंद किया कि
कल्पना प्रकृत्ति के ऊपर मानसिक जगत के प्रक्षेपण का दूसरा नाम है । फिर
यद्द प्रकूति क्या है ! कोलर्जि का कइना है कि वह हमारी इन्द्ियों का प्रसेपण
है | ्रर्थात् मन तथा इन्द्रिय से ग्रलग किसी तीसरी वस्तु की सत्ता नहीं है ।
जितना कुछ दम बादर देखते हैं, मूलतः वह हमारे भीतर हैं, बादर तो उसका
प्रसैपमान दीयता है | कल्पना इसी वाद्य प्रनेरश के सहारे विकसित दोतो द्ै
श्रयात् चह सूदम रूप में तो मीतर है, पर मूत रूप ग्रहण करने के लिये उसे
चादर श्राना पढ़ता है । रोमाटिक कविता में इस सिद्धान्त को चड़ा महत्त्व दिया
गया श्र इसने उस काव्यघारा की दो मुख्य प्रहडलिया पोपित हुई--
इ--व्यक्ति के भीतर श्ात्म प्रसार की भावना |
२-मानरवीकरण की व्यायकता ।
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