महाकवि अकबर | Mahakavi Akbar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लक
जीवन-चरित घर काव्य की घ्ालोचना श्श्
्रकबर के “अवध पश्च” के लेखों में वदुत सी कवितायें
ऐसी हैं जो झाज् भी उतनी ही रुचि से पढ़ी जाती हैं जितनी
रुचि से उन दिनों पढ़ी जाती थीं । इनमें से झ्धिकांश क्या
प्रायः सभी सासयिक विषयों पर हैं । सामयिक विषयें पर लेख
कैसे ही रोचक क्यों न हां, समय बीत जाने पर श्पनी लोक-
प्रियता वहुत कुछ खो देते हैं परन्तु झकवर के वढुत से लेखों
में यह वात नहीं । कारण यह क्िः--
क्पोंकर न शेरे-अकघर श्राये' पसन्द सबको ।
यह रंग ही नया हे कूचा ही दूसरा है ॥।
कुछ दिन पीछ़े मुंशी सज्ञादहुसेन की श्रकाल-स्ृत्यु हो जाने
से घवधपश्च बन्द हो गया श्रौर वह सभा टूट गई परन्तु श्रकयर
के उष्द विचारों के हास्यजनक उद्गारों ने उस सभा का काम
दरायर उसी तरह जारी रक््खा जिससे कुछ ही काल में उद-
संसार ने श्रापकां श्रपने रह का उस्ताद मान कर लस्सान-उल-
घ्मस्त्र ( सामयिक कवि ) की पएदवी दी ।
सन् १६०३ ई० में श्ापने जज-खफीफा के पद से पेंशन
ले ली श्ौर श्पने दड़े लड़के सैयद इशरतटुसेन दी० ए० (क्टाद)
'डिपटी कलकर के नाम पर चौक के समीप पक काठो “इशरत
मंज़िल” दनवा कर श्राप प्रयाग-वास करने लगे । लोगों का श्रन
मान था कि झव घ्ापका समय श्ानन्द से व्यतीत होता होगा
परन्तु कालचक्र ने ऐसा न हे।ने दिया । सात दप' तक मोतिया-
विन्द से श्राप पीड़ित रहे । दिसम्दर सन् १८०८ ई० में कलकरों
में नश्तर लगवाया जिससे श्रापकी श्राखों में फिर से ज्योति .
ब्यार्। इस हर्प के श्यदसर पर झापने डाक्टर के घन्यवाद में
पक कविता लिखी जिसके दो पद ये हैं--
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