श्री जैन सुबोध रत्नावली | Shri Jain, Subodh Ratnavali  

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Shri Jain, Subodh Ratnavali   by पन्नालाल जमनालाल रामलाल किमती-Pannalal Jamanalal Ramlal Kimti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) सुच्रकी वाणी सुणकर जोर छगाया । करी पचरंगी प्रमुख तपरया भाया । ६ ढ हल #»_ ७ ॥९ कहे 'ह[रालाल' दया 'घम मोक्षकी सेरी ॥ठुम॥९॥ फनकलालिाााााला, प श्री महावीर श्वामीका स्तवन ॥ महाड राग ॥ खुर्रंगना गावे मज्ञलाचार, दैवांगना गावे मज्ञालाचार ॥ मां ॥ उध अधोगति थकीरे । तिथेकर पद पाय ॥ जननी स्वप्ता देखिया कांइ । दिग वेण दोनें मिलाय ॥ सु ॥ १ ॥ उप्पन कुंवारी सब सिणगारी । गावे मिल गीत ॥ राति करे आप आपणी कांइ । प्र्ण प्रभकी प्रीति॥सु॥र॥ इन्द्र इन्द्ाणी आवियारे । नर नार्याका इंद ॥ जन्म भवने जिनसाजकों । और जननी को- नमत आनन्द ॥ सु0 ३ ॥




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