गाँव में सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक परिवर्तन | Ganv Main Samajik Arthik Or Rajneitik Privartan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)या व्यवस्था की पृष्ठभूमि
के रूप में संस्थाओं का विकास स्वाभाविक रूप में हुआ । दूसरे शब्दों में आवश्यकता
एवं समस्याओं के समाधान के प्रयास के रूप में व्यवस्था का विकास हुआ । इस विकास
में गाँव समाज के बुजुर्ग एवं सामाजिक नेतृत्व की श्रमुख भूमिका रही । गाँव के प्रमुख
लोगोंने आवश्यकता को देखकर इसे विकसित की तथा इसे परम्परा का रूप दिया । यह
व्यवस्था राज्य या अन्य वाहरी संस्था की ओर से लागू नहीं की गयी |
(ख) स्वेच्छा से पालन - इनकी क्रियान्विति में प्रमुख वात यह देखने में आयी कि
उनका पालन लोग स्वेच्छा से करते हैं ।
(ग) सामाजिक एवं नेतिक दवाव - गाँव समाज में सामाजिक दवाव का प्रमुख
स्थान होता है। किसी परम्परा या व्यवस्था का पालन नहीं करने पर गाँव समाज का
नैतिक दवाव तथा व्यक्तिगत स्तर पर ग्राम प्रमुख का नैतिक दवाव पड़ता है जिसके
कारण परम्परा प्राय: सर्वमान्य हो जाती है |
(घ) ग्राम कुटुंब की भावना - गाँव के लोग गाँव को एक इकाई एवं कुटुंव मान
लेते हैं, इस स्थिति में निर्णय एवं परम्परा को मानना आसान हो जाता है। इस भावना
का हास ग्राम व्यवस्था में विखराव का प्रमुख कारण है |
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