मौसम की कहानी | Mausam Ki Kahani

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Mausam Ki Kahani  by इवान रे टैनहिल - Ivan Ray Tannehillहरीशचन्द्र विधालंकर - Harishchandra Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा अदश्य वायु-सागर १४ भाग दूसरी गैसें हें जिसका भ्रधिकांदा भाग श्रारगन हे श्रौर बाकी अ्रत्पांद में दूसरी कई गसें । सब जानते हें कि गैसों का भार बहुत कम होता हे । इसीलिए 'वायु जितना हलका' कहावत चल पड़ी हू । लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वायुमण्डल में भार होता ही नहीं । इसका भ्रथ॑ं सिफँं यही है कि मीलों की ऊँची हवा हम पर जो दबाव डाल रही है वह हमको भ्रनुभव नहीं होता । हमारे दारीर उस भार को सहन करने के वैसे ही श्रादी हो गये हें जैसे मीलों गहरे समद्र में रहने वाली मछलियां श्रपने ऊपर पड़ने वाले पानी के भार को सहन करने की भ्रभ्यस्त हें । भ्रच्छा तो बताइए कि वायुमण्डल का कितना भार हमें उठाना पड़ता है ? सागर को ज्यादा गहराइयों में रहने वाली मछलियों पर जो दबाव पड़ता है, उसकी तुलना में हम पर पड़ने वाला दबाव कृछ भी नहीं हे । पृथ्वी के तल पर वायु का भार भ्रपने समान श्रायतन के जल के भार का आ्राठसौवाँ भाग ही है । यह कुछ ज्यादा नहीं लगता । परन्तु जब हम मीलों की ऊँचाई तक फंली वायु का हिसाब लगा- कर देखते हें तो पता लगता हे कि वायु में काफी भार हे। वायु प्रत्येक वर्ग इंच पर लगभग १४ पौंड--सात-श्राठ सेर के भार के बराबर दबाव हम पर डालती है । फिर गेसों का एक विचित्र गुण यह हू कि उनका न कोई निद्चित झ्राकार होता है न निश्चित माप (लम्बाई-चौड़ाई) । किसी बर्तन




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