बिराटा की पद्मिनी | Birata Ki Padmini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिराया की पश्चिनी श्श्र
कुंजरसिंह आया । २०-२१ वष का सौंदयमय बलशाली युवा था । राजा
ने उसे अपने पास बिठलाकर कहा--''कल पहुज में स्नान न होगा |?”
“क्यों काकाजू १” कुंजरसिंह ने संकोच के साथ पूछा ।
“इसलिये कि उसमें पानी नहीं है ।” राजा ने उत्तर दिया--“'हमको व्यथ
दी यहाँ लिवा लाए. |?”
कुंजरसिंद राजा के विक्षिस स्वभाव से परिचित था। जनादन और
लोचनसिंह का सुँद्द ताकने लगा |
छोचनिंद ने कद्दा--'हृकीमजी कहते हैं, नहाने से बीमारी बढ़ जायगी |”?
कुंजरसिंद ने धीरे से कहा-'“दलीपनगर में दी माकम हो जाता तो यहदँ
तक आने का कष्ट मद्दाराज को क्यों होता ?”?
आत्मरक्षा में इकीम को कहना पड़ा--“'थोड़ी देर के स्नान से कुछ नुकसान
न होगा ।””
राजा बोले--““तब पालर की झील में डुबकी लगाई जायगी, बड़े सबेरे डेरा
पालर पहुँच जाय |”?
पालर ग्राम विक्रमपुर से चार कोस की दूरी पर था । चारों ओर पद्टाड़ों से
घिरी हुई पालर की झील में गहराई बहुत थी। उसमें डुबकियाँ लगाने के परिणाम
का अनुमान करके आया देदर काँप गया । बोला-““ऐसी मर्जी न हो । शील
बहुत गददरी है और उसका पानी बहुत ठंडा है ।””
“और तुम्हारी दवा घुरे पर फंकने लायक ।” राजा ने हसकर और फिर
तुरंत गंभीर होकर कददा--“तुम्हारे कुदतों में कुछ शुण होगा श्र तुम्दारी
शेख्री में कुछ सचाई, तो झील में नहाने से कुछ न बिंगड़ेगा । नहीं तो रोज़-रोज़
के मरने से तो एक दी दिन मर जाना कहीं अच्छा |”?
जनादन बिषयांतर के प्रयोजन से बोला--“अन्नदाता, सुना जाता है,
पालर में एक दाँगी के घर दुर्गाजी ने श्रवतार लिया दै । सिद्धि के लिये उनकी
बड़ी महिमा है |”
“प्तुमने आज तक नहीं बतलाया !” राजा ने कड़ककर पूछा श्रोर तकिए;
पर अपना सिर रख लिया ।
लोचनसिंद ने उत्तर दिया--“सुनी हुई ख़बर है । ग़लत निकछती, तो
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