बिराटा की पद्मिनी | Birata Ki Padmini

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Birata Ki Padmini by वृन्दावनलाल वर्मा -Vrindavanlal Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिराया की पश्चिनी श्श्र कुंजरसिंह आया । २०-२१ वष का सौंदयमय बलशाली युवा था । राजा ने उसे अपने पास बिठलाकर कहा--''कल पहुज में स्नान न होगा |?” “क्यों काकाजू १” कुंजरसिंह ने संकोच के साथ पूछा । “इसलिये कि उसमें पानी नहीं है ।” राजा ने उत्तर दिया--“'हमको व्यथ दी यहाँ लिवा लाए. |?” कुंजरसिंद राजा के विक्षिस स्वभाव से परिचित था। जनादन और लोचनसिंह का सुँद्द ताकने लगा | छोचनिंद ने कद्दा--'हृकीमजी कहते हैं, नहाने से बीमारी बढ़ जायगी |”? कुंजरसिंद ने धीरे से कहा-'“दलीपनगर में दी माकम हो जाता तो यहदँ तक आने का कष्ट मद्दाराज को क्यों होता ?”? आत्मरक्षा में इकीम को कहना पड़ा--“'थोड़ी देर के स्नान से कुछ नुकसान न होगा ।”” राजा बोले--““तब पालर की झील में डुबकी लगाई जायगी, बड़े सबेरे डेरा पालर पहुँच जाय |”? पालर ग्राम विक्रमपुर से चार कोस की दूरी पर था । चारों ओर पद्टाड़ों से घिरी हुई पालर की झील में गहराई बहुत थी। उसमें डुबकियाँ लगाने के परिणाम का अनुमान करके आया देदर काँप गया । बोला-““ऐसी मर्जी न हो । शील बहुत गददरी है और उसका पानी बहुत ठंडा है ।”” “और तुम्हारी दवा घुरे पर फंकने लायक ।” राजा ने हसकर और फिर तुरंत गंभीर होकर कददा--“तुम्हारे कुदतों में कुछ शुण होगा श्र तुम्दारी शेख्री में कुछ सचाई, तो झील में नहाने से कुछ न बिंगड़ेगा । नहीं तो रोज़-रोज़ के मरने से तो एक दी दिन मर जाना कहीं अच्छा |”? जनादन बिषयांतर के प्रयोजन से बोला--“अन्नदाता, सुना जाता है, पालर में एक दाँगी के घर दुर्गाजी ने श्रवतार लिया दै । सिद्धि के लिये उनकी बड़ी महिमा है |” “प्तुमने आज तक नहीं बतलाया !” राजा ने कड़ककर पूछा श्रोर तकिए; पर अपना सिर रख लिया । लोचनसिंद ने उत्तर दिया--“सुनी हुई ख़बर है । ग़लत निकछती, तो




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