डायरी के कुछ पन्ने | Dayari Ke Kuchh Panne
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है । वे किनारे उत्तरे, सगर 'ाखें सचकी गांधीजी की
ही छोर लगी थीं । वल्लभभाई के चेहरे पर विपाद
था । जवाहरलालजी के चेहरे पर मुस्करादट । पंडितजी
भी पहुँचे थी न थे। सब लोग पूछते श्र
“ 'सालचीयजी अभी नहीं आये ?” ाखिर ऐस मोके
पर पहेचे । जहाज ने लगर उठाया शोर धीरे-धीरे
सरका; तव कहीं पता लगा कि हम लोग जानेवाले हैं।
रामेन्धर, न्रलमोह्न रूमाल दिला-हिलाकर संकेत कर
रहे थे । पर से तो विचित्र दशा में गोते खा रहा था।
एक छोटे से दुवल्ले-पतले आदमी ने लोगों को कैसा
मोहित कर लिया हे; इसी पर विचार कर रहा था ।
किन्तु जद्दाज चलने लगा तो याद पड़ा कि जा रहा
हूँ । उ्यों-ज्यों जददाज़ छोर किनारे के वीच का ध्न्त-
राय बढ़ता गया; त्यॉ-त्यों सन तेज़ी के साथ किनारे
की छोर दौड़ लगाने लगा । शायद किनारे के लोगों
की भी यही हालत थी । 'ाखिर आओखों ने काम देना
बन्द कर दिया और लोगों को पहचानना भी मुश्किल
हो गया । तब कानों से जयनाद सुनते रहे । अन्त में
तो समुद्र का खुं-खं रह गया । दिन्दुस्तान का तो अब
तामोनिशान भी नहीं । चारों तरफ पानी-ही-पानी है
शरीर उनके वीच हमारी छोटी-सी दुनिया--“राज-
पाँच
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