बिखरे विचार | Bikhare Vichar

Bikhare Vichar by घनश्यामदास बिड़ला - Ghanshyamdas Bidla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिलानी-कलकत्ता-दिल्ली ९ कोई सुनाई नही ह ! आखिर उसने वेकाम वनकर अपनी शान रख ली। मेने सोचा, चलो, अब शान्ति से पढेंगे । व्रजमोहन अपनी हार मानकर सो गया । किन्तु रात को जव-जव मेने स्विच खोलकर पखे से पूछा, “पखे, तुम्हारा क्या हाल हैं ?” तो उसने कराहते हुए अपनी करुण कहानी मुझे सुनाई। मुझे निश्चय है कि पख्े ने ब्रजमोहन पर मारपीट का मुकदमा दायर न करके अपनी उदारता का परिचय दिया | सुबह होते ही त्रजमोहन ने पंखे से फिर छेड़छाड की । मेने कहा कि अब गरीव को न सताओ । किन्तु त्रजमोहन कव मानत्ता था--स्टेशन-स्टेशन पर रेल- कर्मचारियों से कहता आया कि देखिए, पखा विगड गया है । यह किसी सेनं का, मैने पचा विगाड दिया है । रेल के मिस्तरी माये ओर गये, किन्तु पला टस-से-मस न हा । मेने पले की दृढता पर उसे वधार्ई दी 1 आखिर उसने अपनी टेक ओर इज्जत रख री । ॐ ৯ > प्रात काल गाडी दानापुर पहुँची । सब लोगो की निद्रा भग हुई | उठते ही ब्रजमोहन ने शिकायत की कि रात को उसकी आँख मे इजन के कोयले का ठुकडा गिर गया। मास्टर श्रीरामजी ठहरे आपूर्वेदाचायं। वात-की-वात में अनेक उपचार वत्ताये गये, किन्तु दस वजे तक आँख में




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