जैन तर्क शास्त्र में अनुमान - विचार ऐतिहासिक एवं समीक्षात्मक अध्ययन | Jain Tark Shastar Men Anuman-vichar Etihasik Evm Samikshatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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No Information available about डॉ.दरबारी लाल कोठिया -dr.darbaari lal kothiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तुत झुति ९
द्वितीय अ'यायमें दो परिच्छेद है । प्रथममें जन प्रमाणवादवा विवेचा करते
हुए उसमें अनुभानका क्या स्थान है, इसे वतलावर प्रमाणके प्रत्यक्ष और परोक्ष
दो भेदोकी मीमासा, परोक्षप्रमाणम अनुमानका अन्तर्भाव, स्मृति आदि परोक्ष
प्रमाणोका संक्षिप्त विवेचन बिया गया हु । द्वितीय परिच्छेदमे जैनागमके आलोक-
में अयुमानका प्राचीन रूप, अनुमानका महत्त्व एव अनियायता, जैन दृष्ट्सि अनु-
मात परिभाषा एव क्षेत्र विस्तार इन सवपर प्रकाश डाला गया हैं ।
तृतीय भध्यायमें भी दो परिच्छेद है । पहरेंमे अनुमानके विविध शेदोपर
भारतीय दशनोमें किया गया विचार ग्रथित हैं तथा अफलड़ू, विद्यानद, वादि-
'राज, प्रभाचद्र भादि जन ताकिकोकी तत्मम्व घो मी मासा एवं विमर्श निबद्ध है ।
प्रत्यक्षको अमृमानकी तरह पराय माननेवाले सिद्धसेन और देवसुरिका मत तथा
उमवी समीक्षा प्रदर्शित है । स्वाध भौर परार्थ अनुमानोकी मूलकल्पना, उदगम
स्थान एव पुप्ठभुमि, उनके अजद्भ एव अवयवोका चिन्तन भी इसमें अड्ित है ।
द्वितीय परिच्छेदम व्याप्तिका स्वरूप, उपाधिमीमासा, उपाधि विमर्श प्रयोजन,
ग्यासिस्वरूपके सम्य थर्में जन तामिकाका नया दृष्टिकाण, व्यापतिग्रहण-समी क्षा,
व्यासतिग्राहकरूपमें एकमात्र तर्कको स्वीवार वरनेवाले जन विचारकोका अभिनत्र
चितन तथा व्याप्तिभंद ( समब्याप्ति विपमव्याप्ति, अवयबव्यासि-व्यतिरेकव्यासि,
वहिर्व्यात्ति, सकलग्यापति, अन्तर्व्याप्ति, साघम्य-वैवम्य -याप्ति , तथोपपत्ति-अ यथानु
पपत्ति ) इन सबका पिमर्दो हूँ ।
चतुथ अध्यायमें दो परिच्छेद हैं। प्रयममें सामा य तथा ब्युत्पस और अब्युत्पन्न
प्रतिपाद्योगी अपेशासे अवयवाका विचार, प्रति, हेतु जादि प्रत्पेक अवयवका
विशिष्ट स्वरूप चिन्तन ओर भद्राहु प्रतिपादित पचशुद्धियों सहित दशावयवोके
सम्ब में दिगम्बर भीर श्वेंताम्यर ताकिवाका विचारभेद विवेधित हु। द्ितीयमें हेतु-
बे विभित्र दाशनिकठसणों ( ढिलसण, निलसण, चतुलक्षण, पचलक्षण, पड्लण,
गौर सप्तलायण ) वी समीक्षा तथा एवलक्षण ( अ यथानुपपनत्व ) वो जग मा य-
ताका विमश है ! परिच्ठेदके अतमें हेतुने विभिन्न प्रकारा--मेरोका चिन्तन है ।
पन््चम अध्यायके अन्तगत दो परिच्छेद है । माद्य परिच्छेदमें समन्तभद्र,
सिद्सेन अकलड़, माणिवयनाददि, देवसूरि और हेमचद्व द्वारा प्रतिपादित्त पक्षा-
भासादि जनुमानाभासोका विवेचन हू । घमभूपण, चारुकीति और यश्योथिजयने
अनुमानदोपोपर जो चिन्तन किया है चह भी इसमें सलेपमे निमद्ध हैं । माणिवय-
नन्दि द्वारा झभिहित चतुविघ बालप्रयोगाभास भी इसीमें विवेचित है जो सबधा
नया है और अन्य भारतीय तर्क्र थामें अतुपल य हूं । दूसरे परिच्ठेलमें वैशेपिक,
न्याय लौर बौद्ध परम्पराओमं चित एवं विवसित अनुमानदोपोका विचार
जड्धित है, जो तुलनात्मक अध्ययनवी दृष्ट्सि चपादेय एवं चात्य हु
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