जैन - भारती | Jain Bharati
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस धर्मका घारक अधम मातंग १ भी पावन अहो
अपवित्र,घम विमुख मनुजयोगी भलेही क्यों न हो!
निष्पक्षता।
स्वज्ञ हो,निर्दोष हो, अविरुद्ध हो अनुपम गिरा,
ये तीन शुण जिसमें प्रगट वह देव है,नहिं दूसरा।
वह वुद्ध हो,शरीकृष्ण हो या दाम्सु हो श्रीराम हो,
वस भेदभाव घिना उसेकर जोड़ नित्य प्रणाम हो ।
सर्वाच हैं सिद्धान्त सब निष्पक्षताकी दृष्िमें, ,
इतिहासके पन्ने उलदिये आप इसकी पुष्टिमें .।
यह हो चुका है सिद्ध जगमें जैन धर्म अनादि है,
. स्वीकार करते श्रे़ता जग २ को न वाद विवाद है।
९ सम्यादर्शन सम्पन्नमपि, मातड देहजपू |
देवा देवं विदुभस्म, गृढ़ागांरान्तराजसपू ।
( औीसमन्तभद्राचाय )
,२ भारतके प्रसिद्ध संस्कृतन्न विद्वान श्रीवालंगाघर तिठककी
सम्मति ( देखो केसरी पत्र ता० १३ दिसम्बर १8०४ )
“प्रन्यों तथा सामाजिक व्याख्यानोंसि जाना जाता हैं कि जेन
घर्म अनादि है । यदद विषय निर्विवाद तथा मतमेदु रहित हे। सुतरां
इस विपयमं इतिहासके ढ़ सूत हैं और निदान ईस्दी सबसे
२६ वर्ष पहलेका तो जेन धर्म सिद्ध. है दी” “महावीर स्वामी जैन
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