इंग्लैंड में महात्माजी | England Me Mahatmaji
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
336
श्रेणी :
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महादेव देसाई - Mahadev Desai
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शंकरलाल वर्मा - Shankarlal Verma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ सागर की कद्दरों पर से-<*
कन्नि की छात्मा अत्यन्त निकट से देखती रही है। कवि- कहता
है--“छापने अनेक कढ़वी घूंटें पी हैं, जाइए, अब विष का अंतिम
प्याला पीने के लिए और जाइए । झापने झसत्य का सत्य से,
घृणा का प्रेम से और कपट का सरल व्यवद्दार से मुकाबला
किया दै। छापने झपने घोरतम शुन्रु तक का झविश्वास करने से
इनकार कर दिया है । तब जाइए और बद्द कढ़वी घूंट और पीजिए,
जो छापके लिए सुरक्षित रखी है, । दमारे कष्ट और छापत्तियों के *
खयाल से झापको दचिकिचाने-की ज़रूरत नहीं ( चटरगाँव की
जरबादी की खबर धीरे-धीरे 'आा रही है)। आपने हमें प्सन्नतापूरवेक
कष्ट-सददन करना सिखाया दै । छापने इमारे करोमल हृदय को
फ्रोलाद-सा कठोर बना दिया है । ऐसी दशा में क्या चिन्ता, यदि
झाप खाली दाथ लोटें ? केवल आपका जाना दी काफी है ।
जाइए, श्र मानव समुदाय को अपना प्रेम और श्रादत्व का
सन्देश सुनाइए । मानवजाति रोगो से कराद रद्दी दे और शान्ति
के मरददस के लिए, जो कि वद्द जानती दै, छाप झपने साथ
ले जायेंगे, अत्यन्त चिन्तातुर है ।” ><
>६ पूल गुजराती कविता इस प्रकार है ---
“अणखूर विश्वास चहँ जीवन तमारूँ,
धूतों, दुगलबाजो _ थकी पढ़ियुँ पनारँ;
शत्रु तगे खोठे ढढी सुखी सूनारेँ,
भा भाखरी शोसीकड़े शिर सोंपुं बाए !
भर
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