तन, मन और परिस्थितियों का नेता - मनुष्य | Tan, Man Aur Paristithiyon Ka Neta - Manushya
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३-आअ।दत-उसकी परतंत्रता ओर उसकीस्वतत्रता ।
नुप्य आदत का गुलाम है । फिर फ्या उसे
स्वत कहा जा सकता है ? हाँ; निश्चय
से चह स्वतंत्र है । चह जीवन तथा उसके
नियमों का निर्माता नहीं है। वे संदेव से
हं। मजुप्य अपने को उन नियमों से
वेछ्ित पाता है । उस में उनके समझने भौर तदजुसार
चलने की दाक्ति दै। उसमें नियम चनाने की दाकि ' नहीं
है, परंतु हाँ, उसके समझने की उसमें धक्ति है। धाछतिक
नियमों के पक अंदामात्र को बनाने की भी दक्ति मनुष्य में .
नहीं है थे अटछ और अचल हैं । 'न कोई उन्हें चना सकता है
ओर न कोई उन्हें विगाड़ सकता हे । मजुप्य केवल उनका पता
लगाता है उनको थनाता नहीं है । संसार में जो कछुछ दुःख था -
फ्लेचय हे, चह प्राकृतिक नियमों के ठीक ठीक न समझने के दी
कारण है । उनका भग करना ही मूखता और बंधन का कारण,
है। एक चोर और डाकू जो अपने देश के नियमों का उल्लंघन
करता है भर एक सज्जन और भला मनुष्य जो निमानुसार
चढ़ता है, इन दोनों में स्वतंत्र कोन है ? एवं जो विना भले घुरे
का विचार किए ही जो मन में आता है सो करता दे, वद्द स्वतंत्र
श्दे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...