मरूभूमि का वह मेघ | Marubhumi Ka Vah Megh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थे। इसी प्रसंग में बात में से बात निकालते हुए मैंने उनसे पुनः अनुरोध किया कि यदि आप अपने को 90 वर्ष के युवा मानते हैं तो अपनी जीवनी लिखवाएँ। आप जैसे युवा को आज की युवा पीढ़ी के लिए अपने जीवन के कुछ अनुभव विरासत के रूप में देने ही चाहिए। इस पर वह हँसकर बोले, शास्त्र कहते हैं कि अपने मन की सारी बातों को कहो मत, रहस्यमय रहो, कठिनाई में नहीं गिरोगे। अतएव अपने मन की 'बातों को जाहिर करने के चक्कर में नहीं जाना ही अच्छा है। '' ऐसा लयता था कि यह प्रकरण अब उनकी तरफ से तो समाप्त ही है। उधर रामनवमी के उत्सव के बाद यह सूचना मिली कि जी. डी. बाबू जुग (स्विट्जरलैंड) में नव-निर्मित आवास पारिजात' के गृह-प्रवेश के लिए कछ ही दिनों में विदेश जा रहे थे। मैं इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था, इसलिए मैंने उनके प्रस्थान से एक दिन पर्व 30 अप्रैल 1983 को उन्हें एक पत्र लिखा द्यक्ति-पूजा में मेरा विश्वास नहीं है। पर, व्यक्तित्व के पूजन-मनन और आराधन में मुझे अकारण और अनायास आनन्द आता है। आपके सामने एक बाल-विद्यार्थी बनकर बैठने का स्वाद ही अलग है। जिज्ञासा को जो तृप्ति मिलती है उस समय, और उठने के बाद जो प्यास बढ़ती है उसमें, उसको नहीं बताना ही अच्छा है। रहस्यमय बने रहेंगे, यही तो आपने कहा था। बसन्तकमारजी ने आजकल कई लोगों को एक बात कहकर भयग्रस्त कर रखा है-8(00167 प)8४ 1101 00-0८ घ्ाधि। 8190009 800 1015 एं0्टा४]211ऐ9:/ आपके मानस को किंचित समझते हुए मैं भी कहता हूँ कि छोड़ें देना पड़ेगा बायग्राफी की बात को। आखिर, जीवनी -लेखन में घटना ओं का ही तो वर्णन आने वाला है। जीवन-दर्शन पर लिखा जाये, यदि लिखना ही है तो। . किन्तु, जीवनी-लेखन और जीवन-दर्शन-लेखन काफी अलग हैं। जीवन के पहलुओं पर लिखा जायेगा तो सम्बद्ध व्यक्ति के चिन्तन, सृजन और स्वप्न का विलक्षण स्वरूप सामने आयेगा। क्रम और घटनाएँ तो उसमें भी हो सकती हैं, किन्तु प्रयोजन हेतु, परिपाटी पालने के लिए नहीं। यह सब तो हम लोगों की बकवास है, पर आप ही संकेत दे सकेंगे अपनी अभिरुचि का। हम-जैसे लड़के आपके सामने बैठकर भी कछ बोलते हैं, तो कछ कहने के लिए नहीं, मात्र सनने के लिए। अधिक-से-अधिक सनने का लोभ हो तो थोड़ा मरुभूमि का वह मेघ/ 19




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