पृथ्वी राज रासो के पत्रों की इतिहासिककथा | Prathvi Raj Raso Ke Patro Ki Etihasikakatha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र चौथा अध्याय प्रमुख मुसलमान पात्रों से संवन्धित है । इस अध्याय में मुसलमान शासक एवं शासित दोनों वर्गों के पात्रों को एक ही साथ अध्ययन का माघार बना लिया गया है । पाचवाँ अध्याय काल्पनिक पात्रों से संवन्धित है। इस अध्याय में कवि कल्पना मसूत पात्रों के विवेचन के साध साथ कथा घिकास में उनके योगदान की चर्चा भी कर दी गई है। छठे अध्याय में स्त्री पात्रों की विधेचना है । पृथ्वीराज रासो जंसे वीर काव्य में स्त्री पात्रों का चित्रण प्राय: केम ही हुआ है किन्तु जो भी प्रसंग वश आ गई है, उनकी प्रामा- णिकता भी देखने का प्रयास किया गया है । सातवाँ मध्याय विभिन्न राज्यों के राज कवि एवं पुरोहित वर्ग से सम्बन्धित है। इस ' कोटि के पात्रों की संख्या भी बहुत कम है । इसी अध्याय में उन पात्रों की भी चर्चा हुई हे जो सामान्य स्तर के है किन्तु कथा-विकास की दृष्टि से महत्व पुर्ण है । प्रस्तुत प्रबन्ध में पृथ्वीराज रासो के लगभग सभी प्रमुख पात्रों का ऐतिहासिक विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया. गया है । किसी भी युग के पात्रों की ऐतिहासिकता खोजना अत्यन्त दुरूह कार्य है । यह जान सकना सरल नहीं है कि आज से लगभग २०-२१ वर्ष पूर्व शारत के स्वतत्रता संग्राम में किन-किन पुण्मात्माओं ने अपने अमूल्य प्राणों की भाहृति दी थी, न जाने कितने नाम ऐसे होंगे जिनके विषय में आज हम जानते तक नहीं, किन्तु फिर भी उनके साथ एक इतिहास सम्बद्ध है । रासो तो हिन्दी साहित्य का आदि महाकाव्य है । इसके समस्त पात्रों को ऐतिहासिक प्रन्थों में खोजना भारी भूल होगी । तत्कालीन मुसलमानों में ही इतिहास लिखने की प्रथा थी, बह पक्षपात के कारण हिन्दुमों की उपेक्षा तथा मपने आश्रयदाता मुसलमान शासकों को मतिशयोक्ति पूर्ण प्रशंसा किया करते थे । यह भी मत्युक्ति न होगी कि प्राय: वह अपने इस प्रकार के ग्रन्थों द्वारा विपक्षियों के विषय मे श्रास्ति पूर्ण प्रचार ही अेघिक करते थे । ऐसी पक्षपात पूर्ण स्थिति में उनके अ्रन्थों में कुछ प्रामाणिक सामग्री खोजना मुग-तुषणां के अतिरिक्त कुछ नहीं । फिर भी पात्रों के विषय में अधिक से अधिक प्रामाणिक एवं ऐतिहासिक सामग्री जुटाने का प्रयत्न किया. गया है । वास्तविकता यह है कि बिना मूल रासो का पता लगाए हुए, उसके पात्रों के विपय में भी अधिकार पूर्ण एवं प्रामाणिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है । रासो में अत्यधिक क्षेपक होने के कारण घहुत से काल्पनिक नामों का भी समावेश हो गया है, जिसके कारण ऐतिहासिक पात्रों का विवरण भी विकृत होकर रह गया है । ऐसी विषम स्थिति से पात्रों का. वास्तविक मूल्यांकन करना अत्यन्त कठिन है, फिर भी लेखक का यही प्रयहन रहा है कि रासो के पात्रों का घास्तविक स्वरूप पाठकों के समक्ष रक्खा जा सके ।.. इस प्रवन्घ लेखन-काल में अन्य अनेक महानुभावों से समय-समय पर वहूमुल्य चुनाव




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