आकाश - दीप | Akash Deep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आकाशन्दीप
वह कहने लगा--“चम्पा ! हम लोग जन्मभूमि-भारतवर्ष से
कितनी दूर इन निरीह प्राणियों में . इन्द्र और 'शची के . समान
'पूजित हैं। पर न-जाने कौन' अभिक्षाप हम लोगों: को” अभी
शतक अलगं किये है ।. स्मरण होता हैं वह दार्शनिकों का 'देश '!
शवह॒ महिमा की - प्रतिमा मुझे वह स्मृति .नित्य आकर्षित
करती ' है; परंतु में क्यों * नहीं जाता ? जानती हो, इतना
“महत्त्व प्राप्त करने पर भी में कड्ञालू हूँ ! - मेरा. पत्थर-सा हृदय
एक दिन *सहसा - तुम्हारे स्पर्श से चन्द्रकान्त-र्माथ. की तरह
द्रवित्त हुआ. । «
स्चम्पा :! में ईरवर को नहीं मानता, में पाप को नहीं मानता
में दया को नहीं समझ सकता; में उस छोक . में. विश्वास नहीं
करता ।* पर मुझे अपने हृदय .के एक दुर्वल अंश पर श्रद्धा. हो
.चली है। तुम न जाने क़ैसे एक बहकी हुई तारिका के समान
मेरे शून्य में उदित हों गई हो 1: आलोक -की. एक “कोमल रेखा
इस निविड़तम में मुस्कराने लगी .।' पशु-बल और धन: के.उपासक
के सन म किसी शान्त और 'कान्त' कामना की - हँसी खिलखिलाने
“लगी; 'पर में न हँस सका ! . पद .
“पवलोगी चम्पा 1 पोतवाहिनी पर असंख्य. धनराशि
लादकर राज-रानी-सी जन्मभूमि के अड्ु में ? आज हमारा
परिणय हो, कल ही हमलोग-. भारत के लिये प्रस्थान करें ।
महानाविक बुद्धगुप्त की आज्ञा: सिन्धु की लहरें मानती- हैं। वे
कि
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