बुद्ध और नाचघर | Buddh Aur Naachghar

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Book Image : बुद्ध और नाचघर  - Buddh Aur Naachghar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मार श टू नल उस समय भ्रंग्रेज नाम से जुड़ी हुई हर चीज लोगों को श्रातंकिंत तो कर ही देती थी । पर उनकी बाद की कविताएँ देखकर मेरी एसी धारणा हो गई थी कि्रे मुक्त छंद को साधु श्ौर श्रोज की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं रखना चाहते । विपय, प्रतिपादन, दृष्टिकोण श्रादि की विविधता उनकी बाद की रचनाय्रों में सहज ही देखी जा सकती हैं। उनको झ्ोज-शली का विक्ञास थी लिवमंगल सिंह 'सुमत' की कुछ रचनाशों में दिखाई पड़ेगा, जैसे 'युग-सारथी' में । मुक्त छंद को ्ात्म-चिंता श्र चिंतन का माध्यम बनाने में श्री सच्चिदावंद हीरानंद वात्स्यायन '्रज्ञेय' के प्रयोग सफल समभे जायेंगे 1 निराला जी के समकालीनों में श्री सियारामशरण गुप्त के मुक्त छंद के प्रयोगों की चर्चा मैं इसलिए करना चाहुँगा कि उन्होंने उसका उपयोग वर्ण- नात्मक श्रथवा कथात्मक कविताग्रों के लिए किया । इस दिशा में कोई दूसरा नाम मेरे दिमाग़ में नहीं चढ़ रहा है। श्रौर झ्राज तो गीतपरक कविताओं के लिए मुक्त छंद का उपयोग जोरों से हो रहा है। गीत के साथ गाने का संबंध छोड़कर, में उसे उन सब कविताओं के लिए प्रयुक्त कर रहा हूँ जिनमें विचारों या भावनाश्ों की एकता हो । लेकिन मुक्त छंद के विकास की दिशा में सबसे भ्रधिक महत्त्व में उन नाटकों भ्रौर रेडियो-रूपकों को देता हूँ जिनमें मुक्त छंद का उपयोग हुआ्आा हैं, जैसे श्री धर्मवी र भारती के “मंधा युग' में । जीवन की ऐतिहासिक श्रथवा सामाजिक परिस्थितियों के संदर्भ में मुक्त छंद जीवन की उन काव्यमय लयों को मुक्त कर सकेगा, जो भ्रभी तक छंदों की नियसबद्ध बेड़ियों में बंद थीं। इनमें वही काम हो सकेगा जो प्रँग्रेज़ी में सत्रहवीं सदी के नाट्यकारों ने किया । मैं ऐसा समभता हूँ कि अतुकांत छंद में किए गए मेरे शषेवसपियर के नाटकों के श्रतुवाद भी इस दिशा में सहायक सिद्ध होंगे । मुक्त छंद के नाटकों की शोर भुकने से एक और बड़ी बात यह होगी कि श्राज के बहुत




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