भाषाशास्त्र का पारिभाषिक शब्द कोश | Bhashashastra Ka Paribhashik Shabd Kosh

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Bhashashastra Ka Paribhashik Shabd Kosh by राजेन्द्र द्विवेदी - Rajendra Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्य ध्वनि नियस लि जाती है । देवनागरी में इस श्रनुनासिक को प्रकट करने के लिए श्रद्धंचन्द्र बिन्द् का प्रयोग होता है परन्तु प्रेस की भ्रसुविधा के कारण श्रधिकांश ग्रन्थों में अनस्वार के बिन्दु का ही प्रयोग होता है अ्रद्धचन्द्र नहीं लिखा जाता । इसी सुविधा के कारण अरब यही प्रकार सर्वसान्य हो ला है भ्रन्यथा नियमानुसार में हैं मैं प्रादि के सभी श्रननासिक केवल विन्द से नहीं बल्कि श्रद्धंचन्द्र प्र बिन्दु से लिखे जाने चाहिए | डा० धीरेन्द्र वर्मा के हिन्दी भाषा का इतिहास से साहित्यिक हिन्दी तथा बोलियों में प्रयुबत श्रनूनासिक स्वरों के कुछ उदाहरण साभार नाव उद्धृत किए जा र साहित्यिक हिग्दी में कै न औ प्र ट श्रंगरखा हंसी गंवार । श्रां भ आ्रांसू बांस सांचा 1 द्रों ् सोंठ जानवरों कोसों । उं ..... घुंघची बुंदेली । ऊँ डर ऊंघना सूंघता गेहूं । जि ईगुर सींचता झाइ । दे ...... विदिया सिघाड़ा धनिया । णं . गेंद बातें में । बोलियो में 1 ब्रज--लौं साँ । ्रौं 2 ... ब्ज--मौंह हों । श्रों अवधी--गोंठिबा गांठ में बाधूंगा ।.... एं 1 अबधी-एएंडुग्रा सर पर मटकी या घड़े के नीचे रखने की रस्सी का गोल घेरा घेंटुप्ा गला 1 एं 2 . ब्रज-रते ए | शे क ब्रज--तें में । ग्रचुनासिकीकरण--सामान्य ध्वनियों को श्रनुनासिक कर देने की प्रवृत्ति । यह ध्वनि-परिवर्तन का एक रूप है । विशेष दे० ध्वनि-परिवतन | ्रसुरूपता--दो श्रसमान या श्रननुरूप या श्रसव्ण व्यंजनों के पास-पास रहने पर एक का दूसरे के समान हो जाना । पिछले व्यंजन के बदलने पर पूर्व या पुरोगामी श्रौर पहले व्यंजन के बदलने पर पइच या पर ये दो मे हो जाते परस्पर- प्रभाव से दोनों के बदलने या तीसरे व्यंजन के श्रा जाने से एक तीसरा भेद श्र हो जाता है । यह ध्वनि-परिवर्तन की एक दिशा है । विशेष दे० ध्वनि-परिवतंन । ग्रन्थ ध्वति नियम--ग्रिम वर्नर ग्रासमान सौर तालव्य दे० यथा० इन चार प्रधान ध्वनि-नियमों के बाद भी कुछ श्रपरिंगरितत ध्वनि-नियम शेष रह जाते हैं जिसका भाषा दास्त्री अन्य-नियमों में वर्गीकरण करते हूं । इनमें से एक मूर्थन्यभाव




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