मेरी असफलताएं | Meri Asafalatayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मार्शल लॉ
( मेरी प्रारस्मिक शिक्षा )
यद्यपि उन दिसो प्रारस्मिक शिक्षा को झनिवायं बनाने का
या चिरक्षरता-निवारण का कोई आन्दोलन नहीं चल रहा था तब
भी में घर वैठकर सौज न उड़ा सका। पढ़े-लिखे घरो से तो
शायद विद्यारम्भ-संस्कार उत्तना ही जरूरी है नितना कि विक्ाद,
शायद उससे भी ज्याददद क्योकि विवाह का बन्धन कुछ दिन टल्ल
भी जाता है लेकिन शिक्षालय का जेलखाना तो बच्चे के खेलने-
खाने के दिनो में ही तय्यार कर दिया जाता है । विद्यानिधि भगवान,
रामचन्द्र और कलानिधि भगवान् कृष्ण को भी गुरु-यृद् जाकर
विद्यात्यो और कलाओ के अध्ययन की खानापूरी करनी पड़ी
थी । यदि आपको विश्वास न हो तो बाबा लुलसीदासजी का
प्रमाण दे सकता हूँ 'गुरु गृह पढ़न गये रघुराई” अगर आप बहुत
भगड़ा करेगे तो श्रीमदुभागवत का थी प्रमाण दे दूँगा । कृष्ण
भगवान् ने चौसठ दिनो मे चौसठ कलाएँ सीखी थी । सान्दीपन
मुनि का नाम तो उनके शिष्य के कारण ही अमर हुआ ।
मेरे पिता सरकारी नौकर थे। उदू से उन्दे छेष न था।
इतना दी नहीं, वे उसका पढ़ता जरूरो समझते थे क्योंकि उस
दिनो बिना उदू ज्ञान के पास-पोट के सरकारी नौकरी के क्षेत्र
ही
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