सहजानन्द डायरी | Sahajanand Dayari
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahavir Prasad Dwivedi
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श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यहाँ तो निंजकी प्रभुता श्रनादि सहजसिद्ध है केवल उसके भावदर्शन ही करना
कार्य रह गया है। की
प्यारो ! करलो अपना काम । मेरे ! मानलो श्रारामकी बात । सब कुछ 1
करलो श्रपने पर मिहर । भया ! न दुखी होश्रो अब रच ।
सब वस्तु पर है, उनके ध्यानसे होने वाला भाव भी पर है । परसे,
परापेरों श्रपना कुछ लॉथ नहीं होना है । खुदद्टी खुदके लिये सहाय है । ऊँ नमः
परमात्मने, ऊ नम छथुद्धाट्मने, ऊ नमो वीतरागाय, ऊ नमो निरब्जनाय,
ऊ नमो सर्वोपद शिनादान समर्थाय ज्ञयकस्वरूपाय सच्चिदानन्दाय ।
२२ जनवरी १£४८
झ्रानन्द तो सदा है, तुम हो न चाही, उल्टे चलो तो इसका अपराध
किसके दिर मडे । तुमद्टी श्रपनी सर्व परिणतिके जुम्मेदार हो ।
अनादिसे लेकर श्रच तक कितना काल चीता श्रौर श्रागे भी तो श्रनन्त
काल वीतता रहेगा । इस वोच सार क्या विपयकपायके परिणाम ही हैं ।
प्रिय ऊवम छोडो श्रपने घ्रूव चेतन्य स्वभावकों देखो ।
श्रानन्द भ्रभी है नहीं, कुछ श्रौर प्रवृत्ति करनेसे श्रावेगा इस बातकों
छोडों । श्रानन्द तो श्रभी भी भ्रानेकी प्रतीक्षा कर रहा है सदा सेवकसा खड़ा
हुआ है; तुमही उसका निरादर करते चले जा रहे हो । देखो तिसपर थी
श्रानर्द तुम्हारी हुझूरीमे खडा है । हे प्रभु ! सेवक पर इष्टि करो ।
वाह्म पदार्थ तो. कुछ भी तेरे नहीं है । उत्तमसे उत्तम, सुन्दरसे सुन्दर
भी बाह्य पदार्थ हो सचेत न हो या शभ्रचेत न हो वह, तुम्हारे तो किसी काम
झानेका ही नहीं । हा झाफुलताके काम विभावके फाम, पापके वाम, विकल्पके
कास विपदाके काम जरूर श्रा सकता है निमित्तरूपसे ।
द डक जो श्राये सो् का के ब श्रीर थी तो चितारो जो
क्र मे रयक्त समस्त < योक कर नन्त सखमे
दा डी जी मल सिमस्व दी स्त ढुसोका अन्त कर अनन्त सुख
२३ जनवरी १६५४८
किसे देखना है ? कौन हित कर देगा ? चाह्ममे किसीकोभी नही देना है,
श्राप बन्द कर झन्तरद्भुमे ही कुछ देखना है सो वह देयना भालखे चन्द करने पर
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कय 2० सरल पकराय कया पिन पेससय कण सरकार पिएं हलक शिया
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