सामाजिक पाषण | Samajik Pasan

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Samajik Pasan by डॉ॰ बूलचन्द - Dr. Boolachand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिच्छेद ४ दासत्व क्योंकि किसी मनुष्य का अपने सहचरों पर किसी प्रकार का प्राकृतिक प्रभुत्व नहीं होता और क्योंकि बल अधिकार का श्रोत नहीं होता, इसलिए रूढ़ियाँ ही मनप्य में समस्त वैध प्रभृत्व का आधार होती हैं । ग्रोशस कहता है कि यदि एक व्यक्ति अपने स्वातंत्य को अन्यक्रामित करके किसी स्वामी का दास बन सकता है तो कोई समस्त राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता को अन्य- क्रामित कर किसी राजा की प्रजा क्यों नहीं बन सकता । उपरोक्त वाक्य में अनेक संदिग्ध शब्द हूं जिनकी व्याख्या करना आवश्यक है, परंतु दाब्द 'अन्यक्रामण की ओर ही हम अपना ध्यान सीमित करेंगे । अन्यक्रामण करने का अर्थ है देता अथवा बेचना । -परन्तु जो मनुष्य किसी दूसरे का दास बनता है वह अपने आपको दूसरे को देता नहीं है, केवल अपने निर्वाह के हेतु अपने आपको दूसरे को विक्रय कर देता है। परंतु कोई राष्ट्र अपने आपको क्यों बेचेगा ? अपनी प्रजा को निर्वाह-साधन उपलब्ध करने के स्थान पर राजा स्वयं निर्वाह के साधन प्रजा से लेता है, और रेवीलेज के कथनानुसार राजा किसी थोड़े अंश पर निर्वाह नहीं करता । तो क्या प्रजा अपने शरीर को इस दात॑ पर पराधीन करती है कि उनकी सम्पत्ति भी उनसे ले ली जायगी ? तो उनके पास परिरक्षित रखने को क्या रह जायगा, यह समझ में नहीं आता । कुछ लोग यह कहेंगे कि स्वेच्छाचारी राजा अपनी प्रजा को सामाजिक शांति उपलब्ध करता है। हो सकता है, परंतु उससे उन्हें क्या लाभ, यदि उसकी लालसा के अंतर्गत उन पर आरोपित होनेवाले युद्ध और उसके अपने अतृप्य लोभ और उसके प्रशासन के प्रबाधन उन्हें अपने पारस्परिक संघर्षों से भी अधिक दिक करनेवाले हों ? उस प्रश्यांति से क्या लाभ, यदि यह प्रशांति ही उनके दुखों का एक कारण बन जाय मनुष्य कारावास में भी प्रशांत रहता है, परंतु क्या उसे वहाँ आनंद होता है ? साइ-




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