अपशिचम तीर्थकर महवीर भाग 2 | Apachim Tirthakar Mahaveer Bhag-2

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Apachim Tirthakar Mahaveer Bhag-2 by आचार्यजी रमेश - Rameshji Acharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपड्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 9 शक्रेन्द्र अपने ज्ञान से भगवान्‌ की विहार यात्रा सुधर्मा सभा मे बैठा चित्रपट की भाँति देख रहा है | भगवान्‌ विहार करते हुए मध्यम पावा के महासेन उद्यान मे जाने को समुद्यत है । शनै -शनै कदमो से उन्होने पावा के महासेन उद्यान मे असख्य देवियो और देवो सहित प्रवेश किया । महासेन का यह उद्यान आज प्रभु के पदार्पण से पुण्य-पुज्ज-सा आभासित* हो रहा है। अपनी हरीतिमा से अतीव शोभायमान होता हुआ यह अनेक प्राणियो का आश्रय-स्थल बना हुआ है । विशालकाय पादपो का समूह सघन पत्तो से परिवृत्, फल-फूलो से लदी डालियो से पृथ्वी-तल को चूमने-सा लगा है | नव-आगन्तुक मजरियो ने प्रभु के पधारने से अपने यौवन के उत्कर्ष को प्राप्त-सा कर लिया | पक्षियों के वृन्द अपने-अपने घोसलो मे प्रभु-सम्मिलन से मत्र-मुग्ध बने हुए भगवान्‌ का स्वागत करते हुए चहचहाट करने लगे । मधुकरोण की मधुर गुज्जार की मनोरम ध्वनि प्रभु के आगमन पर पलक-पावडे बिछाने लगी । स्थान-स्थान पर फहराने वाली ध्वजाएँ मानो कैवल्यज्ञान रूपी विजय का प्रदर्शन करने लगी । बावडियो पर बने सुरम्य झरोखो से छनकर आने वाली मन्द-सन्द समीर शीतलता प्रदान करती हुई प्रभु के चरण चूमने लगी। ऐसे सुरम्य वात्तावरण मे भगवान्‌ ने महासेन उद्यान मे आश्रय ग्रहण किया और तप-सयम से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे। प्रकृति के अचल मे पलने वाली मध्यम पावा नगरी का कण-कण पावनतम बन रहा है | प्राची” दिशा सिन्दूरी रग से रगी हुई सूर्य को प्रकट करने की तैयारी मे संलग्न है। सुमेरु की प्रभा से अरुणाभ बना दिनकर धीरे-धीरे निकलता हुआ अपनी अरुण किरणों से वसुन्धरा को अरुणाभ बना रहा है। खगो मे नभ मे उडने की होड-सी लग रही है। तभी शक्रेन्द्र का आसन यकायक कम्पायमान होता है | (शक्रेन्द्र चिन्तन धारा में) अरे यकायक यह क्या आसन प्रकम्पित हो रहा है? क्यो? (तुरन्त अपने अवधिज्ञान का उपयोग लगाकर) हाँ हाँ आज तो मध्यम पावा (क) आभासित-प्रकाशित, दृष्टिगत (ख) मधुकर-भ्रमर (ग) प्राची -पूर्व (घ) अझरुणाभ-लाल आभा वाला (ड) अरुण-लाल लि




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