जैनेन्द्र और उपन्यास | Jainendra Aur Unke Upanayas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जनेनद्र कुमार : एक परिचय [७
(रा) जैनेन्द्र-लेखक के रुप में
जैनेन्द्र की पहली कहानी लिये जाने को घटना इस प्रकार घटी फि
जैनेन्द्र भर उनके एक मित्र की पत्नी दोनों की लालसा
(क) लेखन के क्षेत्र में. थी कि उनका सिखा कुछ प्रकाशित्त हो झौर साथ ही चित्र
जैनेख के प्रथम भी छुपे । दोनो नें निदचय किया कि श्ागामी धनियवार को
प्रयास-- वे दोनो एक दूसरे को झपनी लिखी कहानियाँ दिखायें ।
दिन भाया तो भाभी की कहानी तैयार थी किन्तु जेनेन्द
यही सोचते रहे कि लिखें तो लिखें कंसे ! किन्तु जैमे-तैमे मिश्र धौर उनकी पत्नी फे
जीवन की एक वास्तविक घटना को लेकर जैनेन्द्र ने एक कहानी लिंस टाली भोर
भाभी को दिखाई ! जेनेन्द्र मानते हैं कि बह उनकी पहली कहानी थी ।
दुसरी, तीसरी व चौथी कहानियाँ एक मित्र श्री कालीचरण धार्मा की हुस्त-
लिखित पश्चिका “ज्योति के लिये लिखी गयी । यह पश्चिका तीसरी-चोथी कक्षाभों
के छात्रों के लिये निकाली गयी थी । कुछ माह बाद उन्ही में से एक फहानी 'खेल'
विशाल भारत' में श्री जिनेन्द्र' के नाम से प्रकासित हुई । यह जैनेन्द्र के लिये श्राद्या-
तत घटना थी । भ्ौर जव इस कहानी से ४ रुपये का मनीप्राडर पारिश्रमिक-सूप
में भ्राया तो उसका जैमेन्द्र के जीवन में कितना महत्व था, इसका उल्लेख पहले किया
जा चुका है । तत्कालीन साहित्य-त्माज में 'सेल' की काफी प्रदयसा हुई श्ौर उसे
'एक चीज' समभका गया। 'ज्योति' में से लो गई दूसरी कहानी 'फोटोग्राफी' छपी ।
यद्द कहानी अपने सग बीती एक घटना का यथावत् चित्रण थी ।
किन्तु इन कहानियों से पूर्व श्राचायं चतुरसेन दास्त्री के 'श्रन्तस्तल' के प्रमाव
में जैनेन्द्र ने 'देश जाग उठा था' गद्य-काव्य लिखा । यह काप्मीर-यात्रा के ठीक धाद
की घटना है । 'भ्रज्ञात' नाम से यह रचना 'कर्मवीर' के सम्पादक चतुर्वेदी जी फे पास
भाचायं चतुरसेन शास्त्री के घाग्रह-पूणं नोठ के साथ भेजी गयी पर प्रकाधित नहीं
हुई । श्राठ-दस दिन वाद एफ झौर रचना जनेन्द्र ने लिसी । भ्राचार्य चतुरसेन ने
उसे 'विध्वमित्र' को मेज दिया पर यह प्रयास भी भ्रसफल रहा । फिर 'विधाल भारत
में 'देवी श्रह्टिसे' नामक गय-काव्य छुपा । उन दिनों गाँधी जी के व्यक्तित्व के प्रभाव
में धह्िता का नाम भ्रौर माव सर्वेप्र व्याल था । उसी भ्रहिमा को देवी नाम से
सम्दोधित करके कुछ भावुकता-पूर्ण प्रश्न किये गये थे । यह गरा-माव्य ही जेनेन्द्र की
प्रथम प्रकाशित मौलिक रचना थी 1 किस्तु भाग्य की विठम्वना यह हुई कि जैमेन्द
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