प्रसाद के तीन ऐतिहासिक नाटक | Prasad Ke Teen Aitihasik Natak
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घ्रसाद की चाव्य-कला 3 [ट
वास्तविक राप का दस प्ता नहीं | रुद्दाभारत श्र रासायश-काण से हमे
दो एक साठकों के नाम मिलते दे; परन्तु उन साटकों की प्रतियाँ अभी
हू हुई | नाटकों का ऐतिहासिक जान हमे व्याकरणाचार्यों
द ने मिलता है । पाणिना के कथानुसार उनके बहत पहले ही
भारतवप मे नाट्य साहित्य पर लक्नगु ग्रन्थ आदि बन चके थे | श्तः
[-सिंद्ध है कि ब्याकरण-काल तक यहाँ पर नाटकों का इतना
प्रच्पर हो गया था कि लोगों ने उनके विपय मे सियमादि बनाना प्रारभ
कर दिया था । पाखिनी का समय लगमग ३०० ई० पू० माना जाता
है, इसलिए भारतवप मे ईसा व कई शवाब्दी पूव से ही नाटक रचना
होने लगी थी । कालिदास का समय जो पहले नाटकों का बालकाल
समझा जाता था, वारतव मे नाटकों के विकास का सध्य युग था । यद्यपि
यदद सत्य है कि कालिदास झे पू् के नाटकों का जान से होंसे से नास्य
साहित्य का श्व्ययन कालिदास के हीं समय से प्रारम होता है |
कालिदास ने मालविकाग्लिमित्र, विक्रमोबशी तथा शकुन्तला
तीन बहुत ही उत्तम श्रौर विश्वविख्यात नाटक लिखे । शकुन्तला तो
कवि की ्रमरकृति है जो कई भापाशों में अनूदित भी हो चुकी है।
कालिदास के उपरान्त श्री दप ने नागानद और रलावली नाटक लिखे
तथा श्री शद्धक ने मृच्छकटिक नामी एक सुन्दर श्रौर सर्वा गपूण नायक
लिखा । इनके परचात् दवी शताब्दी मे महाराज यशोवधंन के राज-
कि भवमभृति ने नाटकशास्त्रो के नियमों से विशदता श्रौर संशोधन-सा
करते हुए ्रपने कई उत्तम नाटक लिख जिनमे उत्तर रामचरित, महा-
वीर-चरित श्रौर सालती-माधव विशेष प्रसिद्ध हैं । इन्होंने अपने नाटकों
म नाय्कीय सिद्धान्तो का उल्लघन भी यथेष्ट किया | परन्ठ कवि की
प्रतिभा ने कहीं थी इनकी कला को नीरस या शक्तिह्टीन नहीं बनाया 1
धवीं शताब्दी मे सड् ने आर विशाखदत्त ने सुद्रारान्स नाटक
लिखे । इनके उपरान्त राजेश्वर ने बालरामायणु श्र कपू 'रमजरी की
र्वना की |
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