राजस्थान के जैन संत | Rajasthan Ke Jain Sant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कस्तूरचंद कासलीवाल - Kasturchand Kasleeval
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डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( को ).
ज जे था'।. बाद में तो वे जनों के भांध्यांत्मिक 'रांजा ' कहलाने लगे. किन्तु यहीं उनके'
“पतन का प्रारस्मिक कदम थी 1
जी, 5 जन सन्तों ने “ भारतीय ' साहित्य को - भ्रमूंस्य कूंतियां ' भेंट 'की है । ' उन्होंने
'. सर्देव ही: लोक भाषा में सोहित्य निर्माण किया । प्राकृत, .अपभ्र दा एवं . हिन्दी
: भाषाओों में रचनायें इनका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । हिन्दी को ' राष्ट्रभाषा बनाने ' का
स्वप्न, इन्होंने : ८ वीं शताब्दी से ' पूर्व ही: लेना प्रारम्भ कर * दिया था 1. मुनि
रामसिह का: दोहा पाहुड हिंस्दी साहित्य की एक * अमूल्य कृति है जिसकी तुलना में
मापा साहित्य, की बहुत कम कृतियाँ 'आ शेकेंगी 1 - महाकंवि तुलसीदास जी को तो
१७ वीं 'दाताब्दी में भी . हिन्दी: भाषा में रामचंरिंत मानस ' लिखेंने में झिझक हो रही
.. थी किन्तु इन जैन सन्तों : ने उनके *. ८०० वर्ष पहिले ही: सहिंस के . साथ प्राचीन
हिन्दी में रचनायें लिखना प्रारम्भ कर दिया था । ०... ७ के
.......” जैन सन्तों ने साहित्य के विभिन्न श्रगों को पत्लवित किया । वे केवल चरित
_ “ काव्यों के निर्माण में ही नहीं उलके किन्तु पुराण, काव्य, . वेलि, रास, पंचासिका,
.. “ बातक,. पच्चीसी, बावनी, . विवाहलो, . बाख्यान आदि काव्य के पचासों रुपों को
... इन्होंने - श्रपना समर्थन दिया बौर उनमें श्रपनी -रचनायें निमित करके उन्हें पल्लवित
.. होने का सुअवसर दिया । यही -कांरण है कि काव्य के विभिन्न अगों में इन सम्तों
: दारा निमित रचनायें अच्छी संख्या में मिलती हैं । की न
... श्राध्यात्मिक एवं उपदेशी रचनायें लिखना इन सन्तों को सदा ही प्रिय रहा
भर है । अपने अनुमव के श्राधघार पर जगत की दवा का जो सुन्दर चित्रण इन्होंने
... “अमपनी कृतियों में किया है वह प्रत्येक मानव को सत्पथ .पर ले जाने वाला है।
' .इत्होंने मानव से जगत से भागने के लिये नहीं कहा किन्तु उसमें” रहते हुए ही अपने
_... जीवंत को सुसुस्नत बनाने का उपदेश दिया । शान्त एवं प्राध्यात्मिक . रस के मंति-
रिक्त इन्होंने वीर, श्र गार, एवं अन्य रसों में भी खुब साहित्य संजन किया । .
.. .महाकवि वीर द्वारा रचित “जम्दुस्वामीच रित” (१०७६) एवं भ०' रतनकीत्ि
. : <द्वारा..बीरविलासफाग इसी. कोटि की रचनायें हैं। रसों .के श्रतिरिक्त छन्दों में
' जितनी विविघताऐं इन सन्तों की रचनाओं में. मिलती हैं उतनी अन्यत्र नहीं । _ इन
न्तों की हिन्दी, “राजस्थानी,.. एवं गुजराती भाषा की ' रचनायें विविघ छन्दों से
, : , माप्लाबित हैं ।
मे नह
लेखक का विद्वास है कि भारतीय. साहित्य की जितनी अधिक. सेवा . एवं
..' “सुरक्षा इन जन सन्तों नें की है उंतनी श्रघिक॑ सेवा किसी सम्प्रदाय अथवा .धर्म के
“साधु वर्ग हारा नहीं हो सकी है । राजस्थान के इन सन्तों ने स्वयं ने तो विधिघ
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