राजस्थान के जैन संत | Rajasthan Ke Jain Sant

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Rajasthan Ke Jain Sant  by कस्तूरचंद कासलीवाल - Kasturchand Kasleevalडॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( को ). ज जे था'।. बाद में तो वे जनों के भांध्यांत्मिक 'रांजा ' कहलाने लगे. किन्तु यहीं उनके' “पतन का प्रारस्मिक कदम थी 1 जी, 5 जन सन्तों ने “ भारतीय ' साहित्य को - भ्रमूंस्य कूंतियां ' भेंट 'की है । ' उन्होंने '. सर्देव ही: लोक भाषा में सोहित्य निर्माण किया । प्राकृत, .अपभ्र दा एवं . हिन्दी : भाषाओों में रचनायें इनका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । हिन्दी को ' राष्ट्रभाषा बनाने ' का स्वप्न, इन्होंने : ८ वीं शताब्दी से ' पूर्व ही: लेना प्रारम्भ कर * दिया था 1. मुनि रामसिह का: दोहा पाहुड हिंस्दी साहित्य की एक * अमूल्य कृति है जिसकी तुलना में मापा साहित्य, की बहुत कम कृतियाँ 'आ शेकेंगी 1 - महाकंवि तुलसीदास जी को तो १७ वीं 'दाताब्दी में भी . हिन्दी: भाषा में रामचंरिंत मानस ' लिखेंने में झिझक हो रही .. थी किन्तु इन जैन सन्तों : ने उनके *. ८०० वर्ष पहिले ही: सहिंस के . साथ प्राचीन हिन्दी में रचनायें लिखना प्रारम्भ कर दिया था । ०... ७ के .......” जैन सन्तों ने साहित्य के विभिन्न श्रगों को पत्लवित किया । वे केवल चरित _ “ काव्यों के निर्माण में ही नहीं उलके किन्तु पुराण, काव्य, . वेलि, रास, पंचासिका, .. “ बातक,. पच्चीसी, बावनी, . विवाहलो, . बाख्यान आदि काव्य के पचासों रुपों को ... इन्होंने - श्रपना समर्थन दिया बौर उनमें श्रपनी -रचनायें निमित करके उन्हें पल्लवित .. होने का सुअवसर दिया । यही -कांरण है कि काव्य के विभिन्‍न अगों में इन सम्तों : दारा निमित रचनायें अच्छी संख्या में मिलती हैं । की न ... श्राध्यात्मिक एवं उपदेशी रचनायें लिखना इन सन्तों को सदा ही प्रिय रहा भर है । अपने अनुमव के श्राधघार पर जगत की दवा का जो सुन्दर चित्रण इन्होंने ... “अमपनी कृतियों में किया है वह प्रत्येक मानव को सत्पथ .पर ले जाने वाला है। ' .इत्होंने मानव से जगत से भागने के लिये नहीं कहा किन्तु उसमें” रहते हुए ही अपने _... जीवंत को सुसुस्नत बनाने का उपदेश दिया । शान्त एवं प्राध्यात्मिक . रस के मंति- रिक्त इन्होंने वीर, श्र गार, एवं अन्य रसों में भी खुब साहित्य संजन किया । . .. .महाकवि वीर द्वारा रचित “जम्दुस्वामीच रित” (१०७६) एवं भ०' रतनकीत्ि . : <द्वारा..बीरविलासफाग इसी. कोटि की रचनायें हैं। रसों .के श्रतिरिक्त छन्दों में ' जितनी विविघताऐं इन सन्तों की रचनाओं में. मिलती हैं उतनी अन्यत्र नहीं । _ इन न्तों की हिन्दी, “राजस्थानी,.. एवं गुजराती भाषा की ' रचनायें विविघ छन्दों से , : , माप्लाबित हैं । मे नह लेखक का विद्वास है कि भारतीय. साहित्य की जितनी अधिक. सेवा . एवं ..' “सुरक्षा इन जन सन्तों नें की है उंतनी श्रघिक॑ सेवा किसी सम्प्रदाय अथवा .धर्म के “साधु वर्ग हारा नहीं हो सकी है । राजस्थान के इन सन्तों ने स्वयं ने तो विधिघ




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