जिन भक्ति | Jin Bhakti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पदान्ता त्रिपयच मान्या ततोधसी,
तदस्त्पेब नो. चस्तु यनाधितिष्ठों ।
घ्रतों ब्मट्े बन्तु यत्तचदौय,
सणएफ परात्मा गतिमें जितेन्द्र ॥ १४
घ्रथ-जिन भगवान की ब्ान्ना जिपदी ही है, जिससे उक्त श्रिपदी
मानने योग्य 2 । जो पस्तु जिपदी से व्याप्त है वह वस्तु है, बोर जो वस्तु
घ्रिपरी से प्रधिष्टित नहीं है बद्ध वस्तु भी नहीं है । श्रत हम कहते है कि
जो पसनु दे प्रिपदीमय है, ऐसे श्री जिनेन्द्र भगवान एक ही मेरी
गति क। (१४)
न शब्दों न रूप रसों नापि गन्धो,
नवा स्पशनेशों न वर्णों न लिंगसु ।
नपूर्यापरत्य न यस्पास्ति सना,
स एक परात्मा गतिमें लिनेस्द्र ॥११४॥।
- जिन थी जिनेस्य्र भगवान के शब्द, सूप, रस, गन्घ, स्पर्श थे पाच
पिपय नी ह, जिन प्रभ वा दवेत श्ादि वर्ण श्रथवा श्राकार नहीं है,
जिनरा रपीलिए, पुलिंग श्रयवा नपुसरकालिंग कोई लिंग नहीं है, जिन्हें यह
प्रथम धर या यट द्वितीय एसी पुर्वापरता नहीं है तथा जिनके ससा नहीं है,
4 सी दिनस्द्र भगवान एक ही मेरी गति हो । (१४)
छिदा नो भिदा नो न फ्तेदो न सेदो,
नशापो न दाहो न तापादिरापत् ।
न सौण्प न दुख न यस्पास्ति वाज्छा,
स एक परात्मा गतिरमें जिनेन्द्र 11 $६॥।
धपनसिप भेगयान गा गस्पर घादि से टेद नहीं है, करवत आ्रादि से
२गहीत जप साहि से यौद उही हे मेरे नहीं है, योप नहीं है, दाह
नहीं ऐ, सम्ताप सादि पापत्ति पही है. सुप नहीं 7. दु य नहीं है, इच्छा
नदी है, ५ एफ । जिनेन्द्र नगयाय मेरी पति हो । (६६)
नम योगा न रोगा न चोद गदेगा ,
स्पदिनों गतिनों से सत्युन जन्म ।
न पुष्प न पाप ने पयर्पार्ति उन्प ,
स एवं परातमा गरनिमें जिनेन्द्र 1६७11
वियध्तल 3 | 5
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