गीता - परिचय | Geeta-parichay
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गीताके सम्वन्धर्म ऊुछ बातव्य चार्तें श्ट
स्वीकार कर लिया, वे युधिष्टिर माता कुन्तीकी युद्ध करनेकी आज्ञा
हो जानेपर युद्धसे कभी भी विंमुख कैसे हो सकते थे ।
यदि अजुन युद्धमीरु होता तत्र तो उसे युद्धमें प्रदत्त करनेके
लिये मगवान्का कथन उचित होता; किंतु अजुन युद्धभीरु नहीं था
बल्कि धमभीरु था । मानों वह इस वातसे भयभीत था कि मेरे
द्वारा कहीं अधम न हो जाय, जिससे मेरी वास्तविक पारमार्यिक
दानि हो जाय । इसलिये भगवानने युद्ध करानेके छिये ही अजुनको
गीता सुनायी--ऐसा मानना उचित नहीं है ।
ज--कई लोग कहते हैं कि गीतामें केवल कमंयोगका ही
वणन है । युद्धभीरु अजुनको युद्धरूप कमेमें छगानेके लिये ही गीता
सुनायी गयी श्री। अतः गीता कर्मप्रधान है; ज्ञान और मक्तिकें वर्णन तो
उसमें प्रसट्लोपात्त हैं । किंतु यह बात नहीं है । अज्ुन अपना
चास्तविंक निंश्चित श्रेय ( कल्याण ) चाहता था । उसने खयं
कहा है--
यच्छेयः . स्थान्निश्चितं. ब्रूहिं तनमे ।
हि (गीता २। ७ का तीसरा चरण )
तदेकं वद निश्यित्य येन श्रेयो5हमा प्छुयाम् ।
(गीता २ | २ का उत्तराध )
यच्छेप पएतयोरेक तन्में बूदि खुनिश्चितम् ।
( गीता ५ | १ का उत्तराध )
इसके उत्तरमे भगवानने श्रेय ( कल्याण ) करनेवाले जो-जो
साघन दो सकते हैं, उन सबको गोनामें कड। है । इसडिये गोता
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