ज्वारभाटा | Jwar Bhata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देवीदयाल चतुर्वेदी मस्त - Devidayal Chaturvedi Mast
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ | ज्वारभाठा
देर तक खड़ी रही । उस दिन फिर वह त्रिवेणी नहीं जा सकी । यमुना
में ही स्नान कर झपने घर वापस चली आ्राई ।
सन्ध्या समय उसने बहुत प्रतीक्षा की लता श्रौर लीलाधर की ।
लेकिन पता नहीं, वे लोग क्यों नहीं श्राए १ शायद उन्दे रेखा के
व्यवहार से चोट पहुँची हो !
इस घटना को बीते श्राज एक महीना हो चुका; लेकिन रेखा है
कि उस दिन के झ्रपने श्रभद्र व्यवहार पर मन-दी-मन एक खीभ से
भर-भर उठती है । जिसकी मधुर कल्पना-मात्र से वह श्रात्मविभोर हो
उठती है; जिसके मिलन-विरह का एक श्प्रकट-सा काल्पसिक रगीन'
तफ़साना युग-युग से सँंजोए; बहती जा रही है जीवन-प्रवादद मे, उसे
शपने घर मे भी उसने नहीं दाने दिया । इस श्रबवज्ञा की भी कोई
सीमा है!
रेखा यही सब सोच रही है श्रौर देख रही है' यमुना की नीली
लहरों पर ड्ूबते सूय की पीली किरणों का प्रतिबिम्ब । ऊँचे-उँचे
बृत्तों पर रेनबसेरा करनेवाले पच्ची क्षोरों से चहचहा रहे हैं; लेकिन
रेखा है कि अपने ही विचारों में खोयी-सी, ठगी-सी श्रौर उलभी-सी
खड़ी है सोन |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...