कंटीले फूल लजीले कांटे | Katile Fool Lajiley Kante

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Katile Fool Lajiley Kante by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६... कंटीले फूल, लजौले काँटे चल रहा है उससे तो यही लगता है कि सुबह होने तक भी एक भी गाहक उसे, मिलना मृद्किल है । इसका श्रर्थ स्पष्ट ही यह है कि उसकी कुरूपता इधरेंशुदृत बढ़ गई है--जितना वह शीशे में मुह देखकर सम- भती है उससे भी कई गुना श्रधिक । ढाई वर्ष पहले जब रयामलाल उसे भगा लाया था तब वह कितनी सुन्दर श्रौर स्वस्थ थी : तब जो भी गाहक झ्राता था वह सबसे पहले उसी से बातें करता था । बह श्रकड़ती थी श्रौर गाहक उसे श्रधिक रुपयों का प्रलोभन देते हुए मनाते थे । केवल तीन ही वर्षों के भीतर इतना बड़ा बदलाव उसके रूप श्ौर रंग में हो गया! अपना सारा सत्व बेचकर श्राज वह हड्डियों का एक ढाँचा बनकर रह गई है, जिसके ऊपर फिल्‍ली चढ़ा दी गई हो । श्राज उसे देखकर गाहक स्पष्ट ही मारे भय के भागने लगते हूं । ठीक है, दयामलाल ने भूठ नहीं कहा था । वह आज सचमुच भुतनी बनकर रह गई है । पर इसमें दोष किसका है ! भ्रौर फिर इयामलाल का वह राक्षसी रूप उसकी झाँखों के आगे नाचने लगता है, जो उसने उसके बहुत कष्ट से बचाये हुए दो रुपये खसोटते समय उसके भ्रागे प्रकट किया था । वह सोचने लगती है कि इयामलाल सचमुच का राक्षस हो गया है--यम' का दूत, मरघट का कफ़त- खसोट चाण्डाल ! भ्रौर उस राक्षस को एक दिन उसने चाहा था' ! उसकी बात का विश्वास भ्राँख मू दकर करके वह बिना किसी शंका के भ्रपने माँ- बाप को छोड़कर उसके साथ भाग निकली थी । तब कौन जानता था कि उस शेतान का पेशा कुछ ग्रौर ही है भ्रौर वहू उसे हर भ्रजनबी के हाथ बेचने के लिये मजबूर करना चाहता है ! तब वह कसी प्यारी- प्यारी चिकनी-चुपड़ी बातें किया करता था ! उसने कहा था कि दोनों एक नया संसार बसायेंगे श्रौर वह चूल्हा-चौका करके गरीब माँ-बाप के साथ रहकर कष्टमय जीवन बिताने से छुट्टी पा जायेगी । उसे जो जिन्दगी एक _ बहुत बड़े श्रसहनीय बोभ की तरह भार मालूम हो रही है वह एक रंगीन सपने में बदल जायेगी । पर श्राज उसकी जिन्दगी श्रंघेरे पाख में श्राधी रात के डरावनें सपने की तरह बीत रही है । कितना बड़ा घोखा दिया




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