अप्सरा | Apsara
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.84 MB
कुल पष्ठ :
241
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अप्सरा एक अदली बैठता था । पीछे की सीट पर अकेली कनक । कनक प्राय झाभरण नहीं पहनती थी । कभी-कभी हाथों में सोने की चूड़ियाँ डालर लेती थी गले से एक हीरे की कनी का जड़ाऊ हार . कानों में हीरे के दो चंपे पढ़े रहते थे । संध्या-समय सात बजे के बाद से दस तक और दिन सें भी इसी तरह सात तक पढ़ती थी भोजन-पान में बिलकुल सादगी पर पुष्टिकारक भोजन उसे दिया जाता था । दे धीरे-धीरे ऋतुओं के सोने के पंख फड़का एक साल और उड़ गया । सन के खिलाते हुए प्रकाश के अनेक करने उसकी कमल-सी आँखों से होकर बह गए । पर अब उसके मुख से आश्चयं की जगह ज्ञान की मुद्रा चित्रित हो जाती वह स्वयं अब झपने भविष्य के पट पर तूलिका चला लेती है । साल-भर से माता के पास उसे चृत्य और संगीत की शिक्षा सिल रही है । इधर उसकी उन्नति के चपल क्रम को देख सर्वेश्वरी पहले की कल्पना की अपेक्षा शिन्ञा के पथ पर उसे और दूर तक ले चलने का विचार करने लगी और गंधर्ब॑-जाति के छूटे हुए पूर्व-गौरव को स्पद्धो से प्राप्त करने के लिये उसे उत्साह भी दिया करती । कनक अपलक ताकती हुई माता के वाक्यों को सप्रमाण सिद्ध करने की मन-ही-मन निश्चय करती प्रतिज्ञाएँ करती । साता ने उसे सिख- लाया-- किसी को प्यार मत करना । हमारे लिये प्यार करना छात्मा की कमजोरी. है यह हसारा धर्म नहीं । तक जनक चल कद कक पक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...