अद्वैत - वैदान्त के विभिन्न सम्प्रदायों में साक्षी का स्वरूप और कार्य | Adwait Vaidant Ke Vibhinn Sampradayon Men Sakshi Ka Swarup Aur Karya

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Adwait Vaidant Ke Vibhinn Sampradayon Men Sakshi Ka Swarup Aur Karya  by रंजय प्रताप सिंह - Ranjay Pratap Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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था। उस समय न अन्तरिक्ष था, न आकाश था, न कोई लोक था, न जल था, न कोई भोग्य था और न ही कोई कभोकक्‍ता था। सर्वत्र अन्धकार ही अन्धकार था। उस समय केवल एक तत्व का अस्तित्व था। वह तत्व वायु के न रहते हुए भी श्वास ले रहा था। द्वितीय भाग से 'स्पष्ठ है कि जो नाम रूप आदि से रंहिंत एकमात्र सत्ता विद्यमान थी, उसी की महिमा से संसार रूपी कार्य-प्रपंच का आर्विशाव हुआ। इसी परम सत्ता के मन में सृष्टि रचना की इच्छा हुई और इसके पश्चात्‌ चर-अचर स्वरूप युक्त सम्पूर्ण सृष्टि ने आकार ग्रहण किया | तृतीय भाग में सृष्टि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में निरूपण मिलता है। इस पूरे ब्रह्माष्ड में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो यह कह सके कि यह सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई ? देवताओं को भी सृष्टिकर्ता के रूप में नहीं माना जा सकता है क्योंकि वे भी सृष्टि रचना 'के बाद ही अस्तित्व में आये थे। इस प्रकार इस संसार में सृष्टि रचना के गूढ़ रहस्य को कोई भी समझ पाने में समर्थ नहीं प्रतीत होता है। यदि कोई सृष्टि के परम गूक़ रहस्य को जानता है, तो वह केवल इस सृष्टि के अध्यक्ष या अधिष्ठाता ही हैं, इसके अतिरिक्त इस गूढ़ तत्व को कोई नहीं जानता है। अतः इस सूक्त में आध्यात्मिक धरातल एवं विश्व-ब्रह्माण्ड के घरात्तल पर की एकता की भावना स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हुई है। विश्व में एक मात्र ही सर्वोपरि सत्ता विद्यमान है, जो सृष्टि-सर्जक एवं नियामक है। नासदीय _ सूक्त की इसी भावना का विकास अद्वैत दर्शन में हुआ हैं।




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