पतन की परिभाषा | Patan Ki Paribhasha

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Patan Ki Paribhasha by श्री परिपूर्णानन्द वर्मा - Shri Paripurnanand Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय २ अपराध क्या है ? धर्म के विरुद्ध किया गया कार्य पाप है। पाप भी' अपराध है। पाप का इस लोक और परलोक मे दड मिलता है। समाज के विरुद्ध किया गया कार्य अपराध है। नैतिकता के विरुद्ध किया गया कार्य अपराध है। न्याय के विरुद्ध किया गया कार्य अपराध है। किन्तु, हर एक मनुष्य एक ही' धर्म का माननेवाला नही होता। हर एक मनुष्य एक ही देश का नही होता। हर एक के समाज का ढॉँचा भी एक समान नहीं होता। अतएव देश, काल, धर्म के अनुसार पाप तथा अपराध की व्याख्या भी भिन्न होती होगी। इसीलिए हर देश का अपराध-शास्त्र भिन्न होना चाहिए, हर एक का नैतिक विधान भिन्न होता ही है। मोटे तौर पर सच बोलना, चोरी न करना, दूसरे का धन अपहरण न करना, हृत्या न करना, पिता-मात्ता का आदर करना तथा पर्स्त्री गमन न करना, पुण्य, सदाचार तथा नेतिकता समझा जाता है। पर, व्यवहार मे भी ऐसा नही है। अपराध तथा पाप की व्याख्या इतनी बडी है कि हममे से कौन कह सकता है कि उसने स्देव धर्म, समाज तथा नैतिकता और फिर न्याय के भीतर काम किया है। न्याय के विषय से इग्लैण्ड के प्रधान विचारपति ने कहा है कि “देश में इतने अधिक कानून बन गये है कि बिना उनका' उल्लघन किये जीना कठिन है।” घर्म इतनी व्यापक वस्तु है कि बड़े-बडे पडित तथा मुल्ला नित्य उसकी व्याख्या करते रहते है, फिर भी शका-समाधान की गुजायद्य बनी रहती है। न्याय उस विधान का नाम है जिसे उस समय का शासक वर्ग यानी बहुमत “उचित” समझता हैं और “अल्पमत” उचित नहीं भी समझ सकता । आज जो विधान है, कल उसे बदला जा सकता है।* किसी देश मे उपभोग की सामग्री को वाजिब मूल्य पर बेचना अनिवाये १. हैरल्ड लास्की--“राजनीति प्रबेशिका” ((09००प८०० ६0 ०908 में लास्की के अनुसार विधान अस्थिर अतएव चंचल वस्तु है।




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